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मेरी हँसी से मेरी मुलाकात – झरना माथुर

neerajtimes.com एक बार मेरी हँसी से मेरी मुलाकात हो गयी। जैसे मेरे मन की बात हो गयी। मैने हँसी से पूछा क्यूँ  हँसी तेरे अनेक रूप है। कभी तू अधरों पे खुल के खिल जाती है और कभी हौले से धीमे पाँव चली आती। हरेक की जिन्दगी में आती जरुर है। कभी जल्दी और कभी देर से। मैने तेरे उस स्वरूप को भी देखा है जिसमे तू अपना पूर्ण रूप बदल लेती है और ठहाका बन के गूंज उत्पन्न करती हो। जिसमे ऊर्जा का वास होता है।

तू मुझसे क्यू रुठी रह्ती है। कभी मेरे अधरों पे भी आया कर। मीठा तराना कोई गाया कर। क्या मुझे खुश होने का अधिकार नही। जब भी तू आने को होती उससे पहले नैनो में आसुओ की बरसात होती। तुझे महसूस भी नही कर पाती। तू छू कर मुझे दूर चली जाती।

हँसी ने मेरी तरफ आँखों में आखें डालकर देखा और अचानक से रूप बदलकर ठहाके में बदल गयी और वो मुझसे बोली पगली मैं आती नही हूँ। मुझे तो खुद इन्सान बुलाता है, खोजता है, ढूँढ्ता है। चीजो मे, छोटी-छोटी बातों में, सपनों में अपनी खुद की यादों मे।

मैने पूछा वो कैसे। वो बोली जो तूने अपने चारों तरफ जो दुखों के राक्षस पाल रखे है। वो पहले अपनी सोच से दूर भगा। अपनी नकरात्मकता को सकरातमक्ता  से  दूर कर। फिर वो कर जिसमे सिर्फ तुझे ख़ुशी मिलती हो। तू सबके लिये तो जी चुकी अब तो अपने लिये जी।

ये सोच क्या चाहिये तुझे जिन्दगी मे।

देखना अपने होठों पे तू मुझे पायेगी। मेरे अनेक रूपों को अपने होठों पे सजायेगी। ये मेरा वादा है।

मैं उसकी बाते सुनकर बहुत खुश हुई और आज मन ही मन ये फैसला लिया। आज से अपने लिये भी जीयूंगी । इस  हँसी को अपने होठों पे लाके रहूँगी।

– झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड

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