बिछुड़ा ऐसे, याद आता रहा ,
रात भर, मुझे सताता रहा।
मुद्दत से नज़र कहाँ आया वो,
सूकूनो – चैन भी जाता रहा।
उसकी हर बात याद है मुझे,
पर गमे-जुदाई, खाता रहा।
उसके खफा होने के बाद भी,
दिन – रात, मुझे भाता रहा।
जुदा तो हुए थे मीठी बातों से,
पर जुबां पे तल्खी लाता रहा।
बेशक न देखा हो उसने मुझे,
पर गली में उसकी जाता रहा।
न सुनी कभी सदा जिसने मेरी ,
निराश उसे ही रोज़ बुलाता रहा।
– विनोद निराश, देहरादून