मनोरंजन

पूर्णिका – मणि बेन द्विवेदी

ख़ुशी  तुमसे   मेरी  तुमसे  हॅंसी  है,

तुम्हारे  बिन  भी  कोई  ज़िंदगी है।

 

तेरे   एहसास   में   गुजरी  सदी है,

वही  मेरा  ख़ुदा  जो  अजनबी  है।

 

कि जीते ख़ौफ में हर लोग अब तो,

या  रब गुजरी  जो ये कैसी सदी है।

 

हुई  हासिल  ख़ुशी  दोनों  जहा की,

मगर  तेरी  कमी  खलती  रही  है।

 

बहुत   चाहा   भुला  दू  याद  तेरी,

बिना यादों  के फ़िर क्या ज़िंदगी है।

 

मसीहा  तू   मेरा   मेरा   ख़ुदा  है,

गुजरती  उम्र  करते  बॅंदगी   है।

 

ठहरने  को  है  अब  सासे हमारी,

तुम्हे  देखू  ये ख्वाहिश आख़िरी है।

– मणि बेन द्विवेदी, वाराणसी, उत्तर प्रदेश

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