सोने के कंगन छनन छनन ।
आयी पहने भृष्टाचारन ।।
छन छन कंगन झंकारों से ।
नैनों के कुटिल प्रहारों से ।।
संसद में देखो नाच रही ,
बतियाती खादी यारों से ।।
मर्यादा तार तार करके ,
गिनवाती सिक्के खनन खनन ।।1
सोने के कंगन छनन छनन —–
इठला कर ऐसे चलती है ।
अपना ये रूप बदलती है ।।
जब रूप दिखाए मज़हब का ,
ये संविधान को छलती है ।।
नेता बहरे हो जाते हैं ,
सुनते ना दुखियों का कृंदन ।।2
सोने के कंगन छनन छनन ——
अधिकारी मद में झूम रहे ।
कुत्ते कारों में घूम रहे ।।
अनपढ़ नेताजी यान चढ़े ,
जो आसमान को चूम रहे ।।
निर्धन फांसी पर झूल रहा ,
सुनता ना दंभी सिंहासन ।।3
सोने के कंगन छनन छनन ——
जिंदा ये सब सरकारों में ।
सोती संसद गलियारों में ।।
यह पैंठ बनाये बैठी है ,
हर दल के राजकुमारों में !
कर अट्टहास इठलाती है ,
होगा कब इसका दंभ दलन ।।4
सोने के कंगन छनन छनन ——-
सदियों से हमको सता रही ।
मुगलों से नाता बता रही ।।
अंग्रेजी में जहर लिए फिरती ,
ये सोचो किसकी खता रही ।।
हलधर” का हल ही कुचलेगा ,
इस जहरीली नागिन का फन ।।
सोने के कंगन छनन छनन ——–
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून