मनोरंजन

मन स्थिति – प्रीती पारिख

आंखों की नमी पिघलती चौराहे पर,

दफन करती अरमानों को,

है बेबसी कैसी उसकी,

है जान भी उसकी जाने को।

 

आरजू पंख तोड़ती रही,

इच्छाएं मुंह मोड़ती रही,

भीगी – भीगी यादें भी ,

है टूटे घरौंदे में जाने को।

 

खामोशी बोलती है ,

अपनी छोटी बातों को,

नफरतों में पल रही लाचारी ,

यू मचलती गाने को ,

 

दबे कदमों की आहट भी,

नागवार लगती उसे ,

थी चलती मयखाने  में ,

अपनी प्यास बुझाने को।

 

हो मदहोश खो जाती,

अपने घरौंदे बनाने को,

अपने घरौंदे बनाने को।

– प्रीति पारीक ,जयपुर, राजस्थान

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