हो रही घर तबाही नशा मानिये।
बच गये मरने से तुम दुआ मानिये।
चँद पल की खुशी दे रही है मजा।
छोड़ दारू को अब कज़ा मानिये।
देह कमजोर हो घर तबाही मे पड़ा।
दे रहा मौत जीते खता मानिये।।
शौक क्यो लोग करते पता ना अहा।
जिंदगी लूट जाती सजा मानिये।।
नाश की जड़ है सुन लो जरा तुम बचो।
दे रही सलाह ऋतु तुम भला मानिये।।
– ऋतू गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़