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माता पिता और गुरु – कालिका प्रसाद

माता-पिता ने जन्म दिया,

दिया गुरु ने ज्ञान।

लाड़-प्यार दिया

दादा-दादी ने।

पर गुरु ने दिया

भले बुरे का ज्ञान,

उठे हृदय में

जब भी विकार।

तब उन्हें गुरु ने

कर दिया शांत,

तभी तो कहता हूँ

इस युग में गुरु भगवान।

 

गुरु ही साँस और

गुरु ही आस है,

गुरु ही प्यास और

गुरु ही ज्ञान है।

गुरु ही संसार और

गुरु ही प्यार है,

गुरु ही गीत और

गुरु ही संगीत है

तभी तो लगी

गुरु से हमारी प्रीत।

 

गुरु ही जान है,

गुरु ही आलंबन है,

गुरु ही दर्पण और

गुरु ही धर्म है।

गुरु ही कर्म और

गुरु ही मर्म है,

बिना गुरु के

कुछ भी नहीं है

तभी तो हृदय में

गुरु ही गुरु बसे हैं।

 

गुरु ही सपना और

गुरु ही अपना है,

गुरु ही जहान और

गुरु ही समाधान है।

गुरु ही आराधना और

गुरु ही उपासना है,

गुरु ही आदि और

गुरु ही अन्त हैै

तभी तो गुरु के

प्रति जगा प्रेम अनंत।

 

गुरु ही साज और

गुरु ही वाद्य है,

गुरु ही भजन और

गुरु ही भोजन है।

गुरु ही जप और

गुरु ही वंदना है,

गुरु ही प्यारा और

गुरु ही न्यारा है

इसलिए तो आत्मा में

वो समाया है।।

 

गुरु ही वन्दना और

गुरु ही मनन है,

गुरु ही चिंतन और

गुरु ही वंदन है।

गुरु ही चन्दन और

गुरु ही नंदन है,

तभी तो सब करते

गुरु का ही अभिनन्दन।

– कालिका प्रसाद सेमवाल, रुद्रप्रयाग

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