मनोरंजन

दोहन – कवि संगम त्रिपाठी

अगिनत शिलाओं के क्षरण से

रेत आती है नदी तट पर,

अट्टालिकाएं निर्मित कर रहे है

हम उसे बेरहमी से बटोर कर।

 

जल प्रदूषित हो गया है मानव

वतन की सारी नदियों का,

ऋण चुकाओगे कब बताओं

निज धरा के बेतहाशा दोहन का।

 

खूब भर रहे है घर वही जो

आज सक्षम है यारों जहां में,

रे मानव खूब दौलत है बटोरी

बांध लें जाएगा उस जहां में।

 

चैन अमन सुकून खोया अरे

खोया प्रकृति के श्रृंगार को,

बता अब बटोही क्या करेगा

क्या दे जाएगा नौनिहाल को।

– संगम त्रिपाठी, जबलपुर मध्यप्रदेश

संपर्क -९४०७८५४९०७

Related posts

बाजार में शिक्षा – आलोक रंजन

newsadmin

हिंदी कविता – डॉ मेघना शर्मा

newsadmin

बसंत पंचमी – रेखा मित्तल

newsadmin

Leave a Comment