देश के हित आज नूतन सर्जना कर के दिखाएं ।
हम सिपाही कलम के उन्माद को जड़ से मिटाएं ।।
काल के मन पर नशे जैसा चढ़ा संवाद कविता ।
चेतना का शब्द रूपों में गढ़ा उत्पाद कविता ।
आँसुओं के तेज में इस्पात को कविता गलाती ।
खून से दीपक जलाकर भूख दीवाली मनाती ।
देश के सौदागरों को दूर सत्ता से भगाएं ।।1।।
हम सिपाही कलम के ————————-
हो कला की साधना का ध्येय जन कल्याणकारी ।
सृष्टि नवयुग की रचें हो चाँद तारों पर सवारी ।
अब कलम ऐसे चले जो कौम का गौरव सहेजे ।
शब्द रूपी बाण से आतंक के भेदें कलेजे ।
कुछ लिखें ऐसा की पतझड़ में बहारें मुस्कराएं ।।2।।
हम सिपाही कलम के —————————-
शब्द हम ऐसे चुनें जो राग को वैराग्य कर दें।
लेखिनी के जोर से दुर्भाग्य में सौभाग्य भर दें।
छंद सुनकर यह धरा भी मोतियों से मांग भर ले ।
वर्ग भेदों की शिलायें तोड़कर जन पांव धर ले ।
खेत में फसलें नचें खलिहान नाचें गीत गाएं।।3।।
हम सिपाही कलाम के —————————
पूंछती युग चेतना कुछ प्रश्न उन बाजीगरों से ।
राजनैतिक कीचकों से मज़हबी कारीगरों से ।
दुर्ग जो उनके खड़े हैं रक्त रंजीत आंकड़े हैं ।
ज्ञान वापी ,ताज के नीचे हमारे शिव पड़े हैं ।
सभ्यता से दासता के दाग को मिलकर हटाएं ।।4
हम सिपाही कलम के उन्माद को जड़ से भगाएं।।
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून