पाँच गाँव यदि दे न सके तो,
सारा राज्य गवाना होगा ।
सच तो पायेगा पैताना
झूठों हित सिरहाना होगा..
काशी मथुरा और अयोध्या ,
मात्र तीन ही तब मांगे थे ।
मति के मारे दुर्योधन-से ,
तब तो तुम सबसे आगे थे ।
झल्लाये थे तब तुम सच सुन,
एक गाँव भी दे न सके थे ।
शांति मार्ग तब खुल सकते थे,
लेकिन निर्णय ले न सके थे ।
अब तो वे क्षण बीत चुके हैं,
भरना ही हर्जाना होगा ।
झूठों हित सिरहाना होगा ।
युद्ध बाद के परिणामों को
बोलो तो मैं अभी सुना दूँ ।
तीन मांग अब बचे न केवल ,
लाखों हैं मैं जिन्हें गिना दूँ ।
जिसे न सोचे सपनों में भी ,
वे सब भी अब देने होंगे ।
और फलित के दोषों को भी,
अपने सिर पर लेने होंगे ।
प्रेमिल कर जब गह न सके तो,
हठ का मूल्य चुकाना होगा ।
झूठों हित सिरहाना होगा–
इतिहासों में एक न अवसर ,
जीता हो जब कभी अनय भी ।
न्याय शक्ति जिसके पाले में ,
हरा न सकता उसे प्रलय भी ।
भीष्म, द्रोण ,इस युग के विदुरों !
मरना तय, कौरव का होकर ।
ज्ञात नहीं क्या मिलता तुमको,
धर्म विरोधी कल्मष ढ़ोकर ।
चाहे जितने बल से लड़ लो ,
तुम्हें यहाँ मर जाना होगा ।
पाँच गाँव यदि दे न सके तो,
सारा राज्य गंवाना होगा ।
सच तो पायेगा पैताना ।
झूठों हित सिरहाना होगा ।
– अनुराधा पांडेय , द्वारिका , दिल्ली