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गीत — अनुराधा पाण्डेय

पाँच गाँव यदि दे न सके तो,

सारा राज्य गवाना होगा ।

सच तो पायेगा पैताना

झूठों हित सिरहाना होगा..

 

काशी मथुरा और अयोध्या ,

मात्र तीन ही तब मांगे थे ।

मति के मारे दुर्योधन-से ,

तब तो तुम सबसे आगे थे ।

झल्लाये थे तब तुम सच सुन,

एक गाँव भी दे न सके थे ।

शांति मार्ग तब खुल सकते थे,

लेकिन निर्णय ले न सके थे ।

अब तो वे क्षण बीत चुके हैं,

भरना ही हर्जाना होगा ।

झूठों हित सिरहाना होगा ।

युद्ध बाद के परिणामों को

बोलो तो मैं अभी सुना दूँ ।

तीन मांग अब बचे न केवल ,

लाखों हैं मैं जिन्हें गिना दूँ ।

जिसे न सोचे सपनों में भी ,

वे सब भी अब देने होंगे ।

और फलित के दोषों को भी,

अपने सिर पर लेने होंगे ।

प्रेमिल कर जब गह न सके तो,

हठ का मूल्य चुकाना होगा ।

झूठों हित सिरहाना होगा–

इतिहासों में एक न अवसर ,

जीता हो जब कभी अनय भी ।

न्याय शक्ति जिसके पाले में ,

हरा न सकता उसे प्रलय भी ।

भीष्म, द्रोण ,इस युग के विदुरों !

मरना तय, कौरव का होकर ।

ज्ञात नहीं क्या मिलता तुमको,

धर्म विरोधी कल्मष ढ़ोकर ।

चाहे जितने बल से लड़ लो ,

तुम्हें यहाँ मर जाना होगा ।

पाँच गाँव  यदि दे न सके तो,

सारा राज्य गंवाना होगा ।

सच तो पायेगा पैताना ।

झूठों हित सिरहाना होगा ।

– अनुराधा पांडेय , द्वारिका , दिल्ली

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