टूटा फूटा हूँ अस्त-पस्त , मैं बिना सुरों का बाजा हूँ ।
गंगा के तट पर बसा हुआ , पुरखों का एक तकाजा हूँ ।।
मैं पतझड़ हूँ सूखा उदास, मैं बिलख रहा मारा मारा ।
कण कण में खोज रहा हूँ मैं,खोए वैभव का उजियारा।।
मैंने देखी है भीष्म बली के वाणों की बौछार यहाँ ।
मैंने देखा है पांडु और धृतराष्ट्र ,विदुर व्यवहार यहाँ ।।
भाई भाई में देखा है, मैंने तीखा टकराव यहाँ ।
गांधारी , कुंती , और माधुरी का देखा बर्ताव यहाँ ।।
सब ज्ञान और विज्ञान केंद्र , मेरे प्रांगण में चलते थे।
गुरुओं की निगरानी में ही , अर्जुन से योद्धा ढलते थे ।।
दुनिया का शक्ति केंद्र था मैं , अब खंडहरों का राजा हूँ ।
गंगा के तट पर बसा हुआ , पुरखों का एक तकाजा हूँ ।।
सदियों से भीष्म बली की , घायल काया को ढोता रहता ।
दुनिया में भारत की धूमिल छाया पर मैं रोता रहता ।।
अपने अतीत के वो निशान , मैं खंडहरों में ढूंढ़ रहा ।
अंधे राजा के कारण ही , मैं किंकर्तव्यविमूढ़ रहा ।।
आती रहती हैं आवाजें टकरा अतीत के गहवर से ।
गंगा की लहरें आ आ कर बतियाती हैं उजड़े घर से ।।
इस इन्द्रप्रस्थ के कारण ही ,कुनवे को मैंने खोया था ।
काटा था मैंने वैसा ही , जैसा मैंने खुद बोया था ।।
द्वापर से आकर कलयुग में , खुलने वाला दरवाजा हूँ ।
गंगा के तट पर बसा हुआ , पुरखों का एक तकाजा हूँ ।।
पांडव तो स्वर्ग सिधार गए , परिक्षत का राज काज देखा ।
जनमेजय का शासन आया , पर धुला न कर्मों का लेखा ।।
अर्जुन गांडीव नहीं दिखता ना दिखा कर्ण का दान दिया ।
दृयोधन, दुस्साशन दिखते ना दिखा विदुर का ज्ञान दिया ।।
धृतराष्ट्र दिखाई देते हैं , आँखों पर हैं काले चश्मे ।
जो पुत्र मोह में रोजाना खाते रहते झूठी कस्में ।।
अर्जुन, माधव के सपनों में , संवाद सुनाई देते हैं ।
आँखें कलयुग में खुलती तो, अपवाद दिखाई देते हैं ।।
मैं काल खंड का वृत चित्रण , मुर्दा हूँ मात्र जनाजा हूँ ।
गंगा के तट पर बसा हुआ पुरखों का एक तकाजा हूँ।।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून