उसे पा लूँ मगर ज़रिया नहीं है।।
कहाँ डूबूँ कि दिल दरिया नहीं है।।
हरी की भी खबर लाता नहीं है।
उसी के बिन रहा जाता नहीं है।
कहूँ किससे हमारे दिल कि बातें।
कहे बिन भी रहा जाता नहीं है।।
कहीं चुप से चला जाता पी मेरा,
बुलाओ तो मगर आता नहीं है।
अभी तो सोन कोई ना हमारा।
बिना उसके कुई भाता नहीं है।।
– स्वर्णलता सोन, दिल्ली