मनोरंजन

प्राईवेट मास्टर की मूक पीड़ा – प्रियंका सौरभ

 

ब्लैकबोर्ड बुदबुदाया—

“यहां हर दिन उम्मीदें राख होती हैं।”

क्लास में खड़ा शिक्षक, आंखों में नींद नहीं,

जब तनख़्वाह पूछो— हंस कर कहता है, “अब आदत सी है यार…”

 

सुबह की असेंबली से लेकर

शाम की स्टाफ मीटिंग तक,

हर सांस में ड्यूटी है,

हर दिन एक नई जिम्मेदारी।

 

रजिस्टर में नाम तो है,

पर समाज में इज़्ज़त?

छुट्टी मांगी तो उत्तर—

“आप ही तो सबसे उपलब्ध हैं!”

 

बच्चे कहें— “सर, बोरिंग है क्लास”,

माँ बोले— “कोचिंग में दाखिला कराओ।”

टॉपर निकले तो क्रेडिट किसी और को,

फेल हुआ तो मास्टर पे हमला!

 

शिक्षक दिवस पर फूल,

बाकी दिन ताने और आरोप।

महिला हो तो “मैडम”, पुरुष हो तो “भैया”,

पर वेतन वही — जो सुनते ही खीज हो जाए।

 

अभिभावक समूहों में रात दस बजे भी संदेश —

“होमवर्क भेजिए”,

कभी पेपर सेट, कभी रैली ड्यूटी,

कभी बच्चों की फॉर्म भराई।

 

पूछो— “क्यों कर रहे हैं इतना?”

तो जवाब भीतर ही घुट जाता है—

“शायद इसलिए कि हमें आदर्श माना गया था।”

 

पर अब गुरु नहीं,

बस एक कर्मचारी हैं हम,

मंदिर वही,

पर पुजारी… थका, भूखा, और उपेक्षित।

– प्रियंका सौरभ, उब्बा भवन, आर्यनगर,

हिसार (हरियाणा)-127045 (मो.) 7015375570

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