मनोरंजन

कविता – रेखा मित्तल

 

बदलते किरदार

जैसे-जैसे बड़ी हो रही हूँ

सब किरदार बदल रहे हैं

जिन नन्हें हाथों को पकड़ कर चलना सिखाया

अब वह मुझे दिशा दिखा रहे हैं

फर्क बस इतना सा है

मैं उसके साथ साया बन चलती थी

वह कहती हैं अकेले घूमो

खुद से दोस्ती करो

मुझे जीवन की सच्चाई से रूबरू करा रही हैं

मेरी बेटी मेरी माँ बनती जा रही हैं

मैं कहती थी जीवन में कुछ बनो

वह कहती,जीवन भरपूर जियो

अपनी इच्छाओं को पूरा करो

परेशानियों को रख सिरहाने

जीवन मस्ती से जियो

फर्क बस इतना सा है

मुझे जीवन के नए अध्याय पढ़ा रही है

मेरी बेटी मेरी माँ बनती जा रही है

– रेखा मित्तल, चंडीगढ़

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