हाँ, यह तो एक रीत है,
विदाई की यह रस्म,
जो जीवित है सदियों से,
और चली आ रही है वर्षों से,
दुःख इसलिए होता है कि,
वर्षों से पोषित एक फूल,
जिससे होती है एक असीम प्रीत,
वह दूर हो जाती है एक दिन,
लेकिन यह तो एक रीत है।
जीवन में मुझको सब कुछ मिला है,
और मैं बड़े परिवार का सदस्य हूँ ,
इस परिवार से मुझको,
सभी प्रकार के रिश्तें मिले हैं,
लेकिन मैं आज तक,
खोता रहा हूँ सभी अरमान।
इतने दिनों से तुमको देखा,
तुम्हारे संस्कारों को देखा,
जिसकी हमेशा से मुझको तलब थी,
वह तुमको देखकर पूर्ण हो गई,
मैं जिसको पाना चाहता था,
वह आज मेरे सामने है,
लेकिन मुझको भी दुःख हो रहा है,
तुम्हारे बिछुड़ने का,
इसलिए कि मैं अपने सपनों को,
विदा कर रहा हूँ ,
लेकिन यह तो एक रीत है।
हाँ यह तो एक रीत है,
जो निभानी है सबको,
इस विदाई की घड़ी में,
मेरे अंतिम शब्द यही है,
इस रिश्ते के प्रेम को,
कभी मत भूलना,
और याद रखना हमेशा मुझको,
मेरे इस पवित्र प्रेम को,
तू हमेशा जिन्दा रखना,
हाँ, आज तू विदा हो रही है,
लेकिन यह तो एक रीत है।
– गुरुदीन वर्मा
तहसील एवं जिला- बारां (राजस्थान)