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सूने अब परिवार – डॉ. सत्यवान सौरभ

हो ममता की नींव पर, घर का पक्का रंग।

मगर दरारें जब पड़ें, बिखरे रिश्तों संग।।

 

रिश्तों की दीवार पर, लगे समय के रंग।

जोड़े दिल की ईंट तो, जुड़ता सच्चा संग।।

 

बचपन की अठखेलियां, दादी का घर बार।

अब बंटवारे में बंटा, यादों का उपहार।।

 

सपनों की गठरी बड़ी, जीवन का है तोल।

जोड़े रिश्तों की डोर, सदा प्रेम अनमोल।।

 

कच्ची मिट्टी प्यार की, रिश्तों की दीवार।

पड़ी दरारें हो जहां, टूटे दिल की तार।।

 

आंगन की वो अठखेलियाँ, बच्चों की किलकार।

भाग-दौड़ में खो गए, रिश्तों के आसार।।

 

खामोशी की मार से, बिखरे दिल का द्वार।

बिना प्रेम की बोलियाँ, सूने अब परिवार।।

 

मिलकर हंसते लोग थे, एक छत एक बात।

बंद आज कमरे हुए, खिड़की से उत्पात।।

 

बड़े-बुजुर्ग छांव थे, साया था विश्वास।

अब दीवारें बोलतीं, चुप्पी का इतिहास।।

 

दादी की कहानियां, मां का प्यार दुलार।

सौरभ सारे बँट गए, खोया वो संसार।।

डॉ सत्यवान सौरभ, उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)-127045

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