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नर्स सेवा का अमर दीप- प्रियंका सौरभ

सफ़ेद चादर में लिपटी छवि,

जीवन का हर दर्द सहती है,

आँखों में करुणा की ज्योति लिए,

निस्वार्थ सेवा में रहती है।

 

हर आहट पर वह जागे,

आँसू को थामे हर दौर में,

रातों को दीप बन जलती,

जीवन के हर मौन शोर में।

 

घावों पर मरहम रखती,

आशा की डोरी बाँधे,

थके हुए कंधों पर हाथ रख,

बुझते दीप को फिर से थामे।

 

वह आँसुओं की सीप सरीखी,

दर्द को मोती सा पिरोती है,

हर थरथराते सांस के संग,

जीवन का गीत गुनगुनाती है।

 

कोविड की काली छाया में,

उसने जीवन की लौ जलाई,

हर हृदय की धड़कन बनी,

सांसों की टूटी डोर संभाली।

 

गाँव की पगडंडियों से लेकर,

महानगर की चकाचौंध तक,

हर कक्ष में उसकी आहट है,

हर दिल में उसका अक्स।

 

वह केवल नर्स नहीं, धड़कन है,

हर हृदय की अनकही पुकार,

जिसके बिना यह जीवन,

होता बस एक बेजान सवार।

 

उसकी थकी आँखों में सपने,

पर कर्तव्य की मशाल है जलती,

हर कराह से जुड़ी उसकी साँसें,

हर धड़कन की धुन वह ही बजती।

 

आज के दिन बस इतना मान,

उनके संघर्ष का करो सम्मान,

हर कदम पर उनका हाथ थाम,

संवेदना की इस संगिनी को सलाम।

-प्रियंका सौरभ उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार

(हरियाणा)-127045 (मो.) 7015375570

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