neerajtimes.com – राष्ट्र को सुदृढ़ता प्रदान करने के लिए व्यवस्था को जटिल बनाए रखने से अच्छा है कि जटिल समस्याओं का समाधान व्यवस्था में सरलीकरण करके किया जाए। आम आदमी के समय और धन की बर्बादी से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो । स्वस्थ एवं सुदृढ़ लोकतंत्र हेतु दलगत राजनीति से ऊपर उठकर जनहितकारी निर्णय लिए जाएँ । चाहे वर्तमान व्यवस्था की समीक्षा व यथोचित हेतु नई व्यवस्था लागू करने का प्रश्न हो अथवा देश, काल एवं परिस्थिति के अनुसार कठोर निर्णय लेने का। अधिकांश समय चुनावी मोड में रहने वाले देश में बरसों से चुनाव सुधारों की बात की जा रही है, स्थान स्थान पर एक देश एक चुनाव के सम्बंध में विचार गोष्ठियों के आयोजन किए जा रहे हैं, किन्तु संकीर्ण स्वार्थो के चलते कुछ क्षेत्रीय तथा वंशवादी राजनीतिक दल सदैव चुनाव सुधारों के विरोध में खड़े नजर आते हैं। समझ नहीं आता कि आम आदमी को भ्रमित करने वाली राजनीति न जाने कब कौन सी शकुनि चाल चलने लगे। कटु सत्य यह भी है कि चुनावी राजनीति आजकल झूठे सच्चे आरोप, अफवाह और स्वार्थपूर्ति तक ही सिमट कर रह गयी है। महंगे पांच सितारा होटलों में बैठकर जब देश के गरीब की चिंता की जाती है, तो लगता है राजनीति के व्यवसायियों को किसी गरीब की नही, अपितु अपनी पारिवारिक दुकान चमकाने की अधिक चिंता है। गरीबों के नाम पर अपना घर भरने वाले न तो चुनावों में सुधार की अपेक्षा करते हैं और न ही आम आदमी का हित चिंतन करते हैं। उनके लिए मतदाता को जागरूक करना भी आवश्यक नही है। यही लोकतंत्र का दुर्भाग्य है। एक राष्ट्र एक कानून, एक राष्ट्र एक चुनाव, एक राष्ट्र समान नागरिक दायित्व, एक राष्ट्र एक नीति की चर्चा भी आजकल बेमानी है, क्योंकि राष्ट्र हेतु उपयुक्त अच्छे प्रयासों का विरोध के नाम पर विरोध किया जाना विपक्ष का धर्म बन गया है।अनेक वर्षों से लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अंतर्गत हो रहे चुनावों के परिणामों से सिद्ध हो गया है कि देश का विपक्ष जन विश्वास खो चुका है तथा अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्षरत है। जब भी किसी प्रदेश में चुनाव की आहट होती है, विपक्षी दल एकजुट होने की कवायद शुरू कर देते हैं, मगर अपने अपने एजेंडे को अलग रखकर केवल जनता को भ्रमित करने का प्रयास करने लगते हैं। जिन राजनीतिक दलों के पास खोने के लिए कुछ नही है, वे येन केन प्रकारेण जनता को भ्रमित करने हेतु अनेक प्रकार के प्रलोभन देकर अपने राजनीतिक वजूद को बचाने हेतु हर संभव प्रयास करने में जुटे रहते हैं, लेकिन अनेक अवसरों पर विपक्ष के बेमेल गठबंधन के चलते जनता जब जूतों में बंटी दाल की तरह विपक्ष को पराजय का स्वाद चखाते हैं तब विपक्ष के नायक अपनी पराजय का विश्लेषण करने के स्थान पर हार का ठीकरा सत्ता पक्ष और चुनाव आयोग पर फोड़ने में विलम्ब नहीं करते। जब एक देश एक चुनाव की बात आती है तब क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को नागवार गुजरता है। इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता, कि देश का बहुमूल्य समय अधिकतर चुनाव के नाम पर बर्बाद होता है। लोकसभा चुनाव भले ही निश्चित समय पर हो, लेकिन प्रादेशिक विधानसभा चुनाव अलग अलग समय पर होते हैं। 1967 से पूर्व ऐसा नही था, उस समय चुनाव एक साथ ही हुआ करते थे। राजनीति के क्षेत्रीय क्षत्रपों के कारण तथा समय समय पर सत्ता परिवर्तन के कारण चुनावों के समय में विविधता आ गई है, जिसे स्वस्थ लोकतंत्र के लिए उचित नही ठहराया जा सकता। विदित है कि प्रत्येक चुनाव प्रक्रिया में समय व श्रम की बर्बादी भी कम नही होती। सो लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव यदि एक ही बार में सम्पन्न करा दिए जाएं, तो चुनावों के नाम पर समय व श्रम की बर्बादी रोकी जा सकती है। सो वन नेशन वन इलेक्शन का फॉर्मूला देश में लागू होना नितांत अनिवार्य है। सभी राजनीतिक दलों को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर एक देश एक चुनाव के समर्थन में आना चाहिए, ताकि स्वस्थ लोकतांत्रिक अनुशासन एवं समय, श्रम व अर्थ की बचत हो सके तथा चुनाव में होने वाले बेतहाशा खर्च से देश के ईमानदार कर दाताओं के धन को बचाकर देश की विकास योजनाओं में लगाया जा सके। (विभूति फीचर्स)