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ग़ज़ल – रीता गुलाटी

 

चाँदनी पास है गर चाँद सजा  होता है,

साथ उसके वो हमेशा ही खिला होता है।

 

आज खामोश दिखा हुस्न, भले शोख अदा,

उसकी मुस्कान मे भी इक दर्द छुपा होता है।

 

हो गयी आज मैं पागल तो भले पागल ही,

जाने जा प्यार मे, अकसर ये नशा होता है।

 

खूबसूरत सा बना ख्याब मेरे दिलबर का,

ख्याब टूटे न कभी सोच सबा होता है।

 

फँस गयी प्यार के धागों मे उलझ जब बैठी,

यार की बाँहो से फिर कौन रिहा होता है।

 

भूल बैठे थे जो जज्बात गरीबों के दिल से,

आ खिला प्रीत से दिल,जिनका दुखा होता है।

– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़

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