neerajtimes.com – मानव जीवन का सबसे पहला अनुभव परिवार से जुड़ता है। यही वह स्थान है जहां मनुष्य बोलना, समझना और जीना सीखता है। परिवार केवल रिश्तों का बंधन नहीं, वह भावनात्मक, सामाजिक और नैतिक मूल्यों का केंद्र होता है। बदलते समय में जब सामाजिक ढांचे में बदलाव आ रहा है, तब यह आवश्यक हो गया है कि हम परिवार की भूमिका को समझें। विशेषकर संयुक्त और एकल परिवारों के बीच के अंतर को जानें। अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस केवल एक तारीख नहीं, बल्कि यह अवसर है पुनः सोचने का कि हम किस दिशा में बढ़ रहे हैं।
संयुक्त परिवार: सहयोग और संतुलन की परंपरा – संयुक्त परिवार, भारतीय संस्कृति की एक अमूल्य धरोहर है। यह परिवारों की संरचना में एकता, सहयोग, और साझा जिम्मेदारी को प्रदर्शित करता है। संयुक्त परिवार में, माता-पिता, दादा-दादी, और बच्चों सहित कई पीढ़ियों के लोग एक साथ रहते हैं और एक दूसरे का समर्थन करते हैं। जब एक ही घर में पीढ़ियां साथ रहती हैं, तो केवल काम नहीं बंटते, बल्कि जीवन के अनुभव, निर्णयों का संतुलन और स्नेह का प्रवाह भी बना रहता है। उदाहरण के तौर पर, जब घर में कई सदस्य होते हैं, तो जिम्मेदारियां साझा होती हैं। इससे मानसिक दबाव घटता है, और व्यक्ति अकेलेपन से बचता है। बच्चों को संस्कार मिलते हैं, और बुजुर्गों को अपनापन प्राप्त होता है।
एकल परिवार: आधुनिकता के साथ चुनौतियां – शहरीकरण और आधुनिक जीवनशैली ने एकल परिवारों की संख्या बढ़ाई है। हालांकि इससे निजता और स्वतंत्रता मिलती है, पर साथ ही सामाजिक अलगाव, तनाव और असुरक्षा की भावना भी पनपती है। कई बार कार्य की व्यस्तता में संवाद का अभाव होने लगता है। बच्चों को मार्गदर्शन की कमी महसूस होती है और बुजुर्ग अकेले हो जाते हैं। इससे अपराधों में भी वृद्धि हुई है और बच्चे एवं युवा पीढ़ी बड़ों के अनुभव से वंचित रहने लगे हैं।
परिवार का सामाजिक और नैतिक महत्व – परिवार समाज की सबसे छोटी इकाई होते हुए भी सबसे मजबूत स्तंभ है। यहीं से व्यक्ति सेवा, सहानुभूति, अनुशासन, मर्यादा और सहयोग जैसे जीवन मूल्यों को सीखता है। परिवार एक ऐसी पाठशाला है जो जीवन भर मनुष्य का मार्गदर्शन करती है। यह केवल साथ रहने का माध्यम नहीं, साथ जीने का अभ्यास भी है।
युवाओं की भूमिका और संयुक्त परिवार की प्रासंगिकता – आज का युवा आत्मनिर्भर और जागरूक है, पर आत्मनिर्भरता का अर्थ सामाजिक संबंधों से कटाव नहीं है। जब युवा संयुक्त परिवार में रहते हैं, तो उन्हें जीवन के विविध पक्षों को समझने का अवसर मिलता है। वे निर्णयों में परिपक्व होते हैं, और जीवन के संघर्षों में अकेले नहीं होते।
परिवार एक संपूर्ण जीवन-दर्शन – परिवार जीवन का आधार है, जहां भावनाएं, रिश्ते, परंपराएं और संस्कार एक साथ पलते हैं। संयुक्त परिवारों की संस्कृति केवल परंपरा नहीं, एक संपूर्ण जीवन-दर्शन है। अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस हमें यह सोचने का अवसर देता है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं और क्या हम सामाजिक समरसता को संजो पा रहे हैं। यदि परिवार सशक्त होंगे, तो समाज भी सशक्त होगा क्योंकि परिवार ही समाज की नींव है। (विभूति फीचर्स)15 मई अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस