मनोरंजन

गिलहरी और तोता – प्रियंका सौरभ

 

वट-वृक्ष की शीतल छाया में,

बैठे थे दो प्राणी चुपचाप—

एक चंचला चपल गिलहरी,

दूजा हरा-पीला तोता आप।

 

थाली में कुछ दाने गिरे थे,

ना पूछी जात, ना वंश, ना गोत्र।

नहीं कोई मंत्र, न यज्ञ, न विधि,

बस भूख थी, और सहज भोग पात्र।

 

न वहाँ कोई ‘ऊँच’ का झंडा लहराया,

न ‘नीच’ के नाम पर थूक गिरा।

न रोटी को छूने से धर्म डिगा,

न पानी पर पहरा किसी ने दिया।

 

गिलहरी बोली—”सखी! कैसा है तेरा कुल?”

तोते ने मुस्काकर कहा—”हम बस प्राणी हैं, सरल मूल।

पंख हैं, पेट है, और प्रेम की चाह,

और क्या चाहिए जीने को एक राह?”

 

सुनकर यह, पेड़ भी झूम उठा,

हवा ने सरसराते हुए ताली बजाई।

पर दूर किसी गाँव की मिट्टी में,

मानव जाति ने फिर दीवार उठाई।

 

सगे भाई ने थाली अलग की,

बहन के हिस्से का जल रोका।

नाम मात्र का मानव बना वह,

पर भीतर था पशु से भी धोखा।

 

कैसा यह व्यंग्य रचा है सृष्टि ने,

जहाँ मनुष्य ज्ञान का अधिकारी है,

पर संवेदना में, प्रेम में,

एक तोते से भी हारी है।

-प्रियंका सौरभ, उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार

(हरियाणा)-127045 (मो.) 7015375570

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