जन्नत की हूरों से जाकर , मिलिए आप हुजूर।
आतंकी जन से यह बोली, शल्य क्रिया सिन्दूर।।
चुटकी भर सिन्दूर शक्ति को , क्या जाने वे लोग।
वहशीपन का जिन्हें लगा हो,घृणित विषैला रोग।।
कह देना अपने आका से, मेरी तुम पहचान।
छोड़ दिया जीवन साथी को,उसने अबला जान।।
रौद्र रूप सिन्दूर दिखाया, अरि को सीना तान।
नाम सोफिया और व्योमिका , बने हिन्द की शान।।
सेवा , समता , मानवता को , सिखलाता है धर्म।
चलो अधर्मी को समझायें , मिलकर हम यह मर्म।।
– मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश