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प्रधानमंत्री द्वारा पाकिस्तान के विरुद्ध सेना को खुली छूट देने के मायने – संदीप सृजन

Neerajtimes.com – पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद से भारत-पाक तनाव चरम पर है । इस हमले के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक उच्चस्तरीय बैठक में सशस्त्र बलों को पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई के लिए खुली छूट देने की घोषणा की। इस कदम ने न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी व्यापक चर्चा को जन्म दिया है।

प्रधानमंत्री द्वारा सेना को खुली छूट देने का अर्थ है कि भारतीय सशस्त्र बलों को आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई के लिए पूर्ण सामरिक और तकनीकी स्वायत्तता प्रदान की गई है। इसका मतलब यह है कि सेना को यह तय करने की आजादी है कि कार्रवाई का समय, स्थान, लक्ष्य और तरीका क्या होगा। यह स्वायत्तता केवल सैन्य अभियानों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें खुफिया जानकारी के आधार पर त्वरित निर्णय लेने और सीमा पार आतंकी ठिकानों पर हमला करने की क्षमता भी शामिल है।

यह नीति पहलगाम हमले के जवाब में सामने आई, जिसे भारत ने पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जोड़ा है। इस हमले ने भारत में जनता के बीच गुस्से को भड़काया और सरकार पर कठोर कार्रवाई की मांग को बढ़ाया। प्रधानमंत्री का यह बयान कि आतंकवाद को करारा जवाब देना हमारा राष्ट्रीय संकल्प है और सेना को लक्ष्य, समय और तरीका तय करने की स्वतंत्रता देना, भारत की आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति को दर्शाता है।

हालांकि यह पहली बार नहीं है जब भारत ने आतंकवाद के जवाब में सेना को खुली छूट दी हो। 2016 में उरी हमले और 2019 में पुलवामा हमले के बाद भी भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कठोर कार्रवाई की थी। उरी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में सर्जिकल स्ट्राइक की, जिसमें आतंकी ठिकानों को नष्ट किया गया। इसके बाद, पुलवामा हमले के जवाब में भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में आतंकी शिविरों पर हवाई हमला किया।

इन दोनों घटनाओं में सेना को सरकार से स्पष्ट निर्देश और स्वायत्तता प्राप्त थी, जिसके परिणामस्वरूप भारत ने अपनी सैन्य शक्ति और आतंकवाद के खिलाफ दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रदर्शन किया। 2020 में गलवान घाटी में चीन के साथ हुई झड़प के दौरान भी सेना को इसी तरह की स्वतंत्रता दी गई थी, जिसने भारत की सीमाओं की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

खुली छूट का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव यह है कि सेना अब बिना राजनीतिक या नौकरशाही हस्तक्षेप के त्वरित कार्रवाई कर सकती है। यह विशेष रूप से सीमा पार आतंकवाद के मामलों में महत्वपूर्ण है, जहां समयबद्ध प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण होती है। इस घोषणा ने पाकिस्तान में खलबली मचा दी है। पाकिस्तानी नेताओं और मीडिया ने 24-36 घंटों के भीतर भारत द्वारा हमले की आशंका जताई थी। कुछ पाकिस्तानी अधिकारियों ने अपने परिवारों को विदेश भेज दिया है, और सेना में सामूहिक इस्तीफों की खबरें भी सामने आई हैं। यह दर्शाता है कि भारत की यह नीति न केवल सैन्य बल्कि मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी प्रभावी है।

भारत की सेना किसी भी समय सीमा पार आतंकी ठिकानों पर हमला कर सकती है। यह हमला सर्जिकल स्ट्राइक, हवाई हमले, या किसी नए तरीके से हो सकता है। पाकिस्तान ने पहले ही सीमा पर टैंक तैनात किए हैं और अपने हवाई क्षेत्र को बंद कर दिया है। हालांकि, उसकी सेना में मनोबल की कमी और आंतरिक अस्थिरता भारत के लिए लाभकारी हो सकती है। संयुक्त राष्ट्र और अन्य देश इस तनाव को कम करने की कोशिश कर सकते हैं। हालांकि, भारत ने स्पष्ट किया है कि उसकी कार्रवाई आतंकवाद के खिलाफ होगी, जिसके लिए उसे वैश्विक समर्थन मिलने की संभावना है।

प्रधानमंत्री द्वारा सेना को पाकिस्तान के खिलाफ खुली छूट देना एक साहसिक और रणनीतिक कदम है, जो भारत की आतंकवाद के प्रति कठोर नीति को दर्शाता है। यह कदम न केवल सैन्य स्तर पर बल्कि राजनयिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव डाल रहा है। हालांकि, इसके साथ क्षेत्रीय अस्थिरता और युद्ध का जोखिम भी जुड़ा है। भारत को अपनी कार्रवाइयों में संतुलन बनाए रखना होगा ताकि वह आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी ढंग से लड़ सके, साथ ही व्यापक युद्ध से बच सके। यह नीति भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन इसके दीर्घकालिक परिणाम क्षेत्रीय और वैश्विक गतिशीलता पर निर्भर करेंगे। (विभूति फीचर्स)

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