neerajtimes.com – पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर पहुंच गयाहै। इस हमले के जवाब में भारत सरकार ने सैन्य कार्रवाई के बजाय एक अनूठी और रणनीतिक नीति अपनाई, पाकिस्तान को पानी की आपूर्ति पर नियंत्रण। भारत ने 1960 की सिंधु जल संधि को निलंबित करने का ऐलान किया, जिसे कई विशेषज्ञ एक ‘जल युद्ध’ की शुरुआत के रूप में देख रहे हैं।
सिंधु जल संधि, जिसे 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हस्ताक्षरित किया गया था, दोनों देशों के बीच जल बंटवारे का एक महत्वपूर्ण समझौता है। इस संधि के तहत, छह नदियों-सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, व्यास, और सतलज के जल को बांटा गया। पूर्वी नदियां (रावी, व्यास, सतलज) भारत के नियंत्रण में दी गई,जबकि पश्चिमी नदियां (सिंधु, झेलम, चिनाब) मुख्य रूप से पाकिस्तान के लिए निर्धारित की गई। यह संधि दो युद्धों (1947 और 1965) के बावजूद दोनों देशों के बीच सहयोग का प्रतीक रही।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और कृषि के लिए सिंधु नदी प्रणाली अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह देश की 90% से अधिक कृषि भूमि को सिंचित करती है और इसके बिना पाकिस्तान में खाद्य सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता खतरे में पड़ सकती है। दूसरी ओर, भारत, जो इन नदियों का ऊपरी हिस्सा नियंत्रित करता है, हमेशा से इस संधि का पालन करता रहा है, भले ही दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता रहा।
पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की जान गई, हमला पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों द्वारा किया गया। इस घटना के बाद भारत सरकार ने त्वरित और सख्त कदम उठाए। जहां पहले भारत ने उरी (2016) और पुलवामा (2019) हमलों के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक जैसे सैन्य कदम उठाए थे, इस बार उसने एक गैर-सैन्य, लेकिन रणनीतिक रूप से प्रभावी रास्ता चुना – पानी की आपूर्ति पर नियंत्रण।
भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित करने की घोषणा की और कहा कि वह पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) के पानी का अधिकतम उपयोग करेगा। जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल ने स्पष्ट किया कि सरकार का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि पाकिस्तान को एक बूंद पानी न मिले। इसके अलावा, भारत ने अटारी बॉर्डर को बंद कर दिया, पाकिस्तानी राजनयिकों को निष्कासित किया, और भारतीय हवाई क्षेत्र में पाकिस्तानी उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिया। ये कदम स्पष्ट रूप से यह संदेश देते हैं कि भारत अब आतंकवाद के खिलाफ कठोर और दीर्घकालिक नीतियां अपनाएगा।
पानी को हथियार बनाने की भारत की रणनीति का यह कदम कई मायनों में अभूतपूर्व है। परमाणु शक्ति संपन्न दोनों देशों के बीच सैन्य टकराव से परमाणु युद्ध का खतरा बना रहता है। भारत ने इस जोखिम से बचने के लिए एक ऐसी रणनीति अपनाई, जो न केवल प्रभावी है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए भी स्वीकार्य हो सकती है। पानी को हथियार बनाना एक ऐसी रणनीति है, जो पाकिस्तान की आर्थिक और सामाजिक संरचना पर गहरा प्रभाव डाल सकती है।
पाकिस्तान पहले से ही जल संकट से जूझ रहा है। विश्व बैंक और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों के अनुसार, पाकिस्तान दुनिया के सबसे अधिक जल-संकटग्रस्त देशों में से एक है। जनसंख्या वृद्धि, खराब जल प्रबंधन, और जलवायु परिवर्तन ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है। यदि भारत पश्चिमी नदियों के पानी को रोकता है या उसका मार्ग बदलता है, तो पाकिस्तान में कृषि, पेयजल आपूर्ति, और जलविद्युत उत्पादन पर गंभीर संकट आ सकता है।
भारत की यह रणनीति कई स्तरों पर काम करती है। पानी की कमी से पाकिस्तान की कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होगा। यह देश की खाद्य सुरक्षा को खतरे में डालेगा और सामाजिक अशांति को बढ़ावा दे सकता है। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेगा। पानी जैसे संसाधन का उपयोग करके भारत ने पाकिस्तान को बिना सैन्य टकराव के कठोर संदेश दिया है। यह कदम भारत के पड़ोसी देशों, विशेष रूप से चीन, को भी यह संदेश देता है कि भारत अपने संसाधनों का उपयोग रणनीतिक रूप से करने में सक्षम है।
सिंधु, झेलम, और चिनाब नदियां भारत के नियंत्रण में हैं, और इनका पानी पाकिस्तान में बहता है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि पानी को पूरी तरह रोकना तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण है। भारत के पास वर्तमान में पर्याप्त बांध और जलाशय नहीं हैं जो पश्चिमी नदियों के विशाल जल प्रवाह को रोक सकें। एक अनुमान के अनुसार, पाकिस्तान में बहने वाले पानी को रोकने के लिए भारत को भाखड़ा नांगल जैसे 22 बड़े बांधों की आवश्यकता होगी। हालांकि, भारत मौजूदा बुनियादी ढांचे का उपयोग करके पानी के प्रवाह को सीमित कर सकता है। गर्मी के मौसम में, जब पाकिस्तान में पानी की मांग सबसे अधिक होती है, भारत पानी की मात्रा को कम कर सकता है। इसके अलावा, भारत नई परियोजनाओं पर काम शुरू कर सकता है, जैसे कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में जलाशयों का निर्माण, जो लंबी अवधि में पानी के उपयोग को बढ़ाएगा।
भारत का यह कदम अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए भी एक महत्वपूर्ण संदेश है। विश्व बैंक, जो इस संधि का मध्यस्थ है, और संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठन इस स्थिति पर नजर रख रहे हैं। पाकिस्तान ने भारत के कदम को अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन बताया है और विश्व बैंक से हस्तक्षेप की मांग की है। हालांकि, भारत का तर्क है कि पहलगाम हमले जैसे आतंकी कृत्यों के बाद वह संधि का पालन करने के लिए बाध्य नहीं है। अमेरिका, ब्रिटेन, और अन्य पश्चिमी देशों ने पहलगाम हमले की निंदा की है और भारत को आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई का समर्थन दिया है। तुलसी गबार्ड जैसे अमेरिकी नेताओं ने भारत को आतंकियों को न्याय के कटघरे में लाने में मदद का आश्वासन दिया है। इससे भारत की स्थिति कूटनीतिक रूप से मजबूत होती है।
भारत का यह कदम दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा सकता है। क्योंकि पानी की कमी से पाकिस्तान की पहले से ही कमजोर अर्थव्यवस्था और खराब हो सकती है। इससे सामाजिक अशांति और राजनीतिक अस्थिरता बढ़ सकती है। हालांकि दोनों देश परमाणु युद्ध से बचना चाहते हैं, सीमा पर छोटे-मोटे संघर्ष बढ़ सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण दोनों देश बातचीत की मेज पर आ सकते हैं, लेकिन इसके लिए पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम उठाने होंगे।
भारत सरकार का सिंधु जल संधि को निलंबित करने का फैसला एक साहसिक और रणनीतिक कदम है, जो बम-गोलों के बजाय पानी को हथियार बनाता है। यह कदम न केवल पाकिस्तान को आर्थिक और सामाजिक दबाव में डाल सकता है, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति को भी मजबूत करता है। हालांकि, इस रणनीति के साथ कई चुनौतियां भी जुड़ी हैं, जैसे कि तकनीकी सीमाएं और अंतरराष्ट्रीय दबाव। भविष्य में, यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत इस रणनीति को कैसे लागू करता है और पाकिस्तान इसका जवाब कैसे देता है। एक बात स्पष्ट है-भारत ने यह साबित कर दिया है कि वह आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में नए और प्रभावी तरीके अपनाने से नहीं हिचकिचाएगा।
(विभूति फीचर्स)