मनोरंजन

हमारी मेहनत, हमारा हक़ – प्रियंका सौरभ

पसीने की चादर ओढ़े जो,

वो सूरज से पहले जागे हैं।

ईंटों में बाँध के सपने,

शहरों के कंधे भागे हैं।

 

न पर्ची, न पहचान कोई,

न तनख्वाह का भरोसा है।

हर दिन सौदा जिस्म का होता,

हर साँस में एक रोषा है।

 

छालों में जलते फर्श मिले,

छायाएँ भी साथ न चलतीं।

फुटपाथों पर नींदे टूटीं,

रातें भी अब भाषण चलतीं।

 

हक़ माँगा तो थप्पड़ आया,

चुप रहना ही नियम बना।

मजदूर दिवस आया-गया,

पर जीवन कब बहार बना?

 

जो थामे हैं इस देश को,

वो झुककर ही क्यों जियें सदा?

अब गीत नहीं, उद्घोष करो —

“हम निर्माणकर्ता, भीख नहीं चाहते,

बस हक़ और दुआ!”

-प्रियंका सौरभ उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार

(हरियाणा)-127045 (मो.) 7015375570

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