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सम्मान के साये (कहानी) – विनोद भगत ‘आंगिरस’

 

neerajtimes.com – छोटे से कस्बे शीकापुर में दो मित्र साथ-साथ स्कूल जाते थे-रघु और अमित। दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते, लेकिन स्वभाव एकदम विपरीत। रघु तेजतर्रार, उद्दंड और मारपीट में आगे, जबकि अमित शांत स्वभाव का, पढ़ाई में अव्वल और शिक्षकप्रिय। रघु को अक्सर स्कूल से निकाले जाने की धमकी मिलती, जबकि अमित हर पुरस्कार समारोह में मंच पर होता।

रघु बहुत ही शरारती या यूं कहें अभद्र और उद्दंड स्वभाव का था। कक्षा में शिक्षक ने उसकी किसी शरारत पर उसे डांटा। लेकिन उद्दंड  रघु ने शिक्षक को अपशब्द कहे, पूरी कक्षा सहमी रही। शिक्षक बुरी तरह क्रोधित हो गये। उन्होंने प्रधानाचार्य को सारे मामले से अवगत कराया। रघु की उद्दंडता देखिए कि उसने प्रधानाचार्य को भी अपशब्द कहे। दरअसल कस्बे के एक राजनीतिक नेता का रघु के परिवार को वरदहस्त प्राप्त था जिसके नाम पर न केवल रघु वरन उसका पूरा परिवार कस्बे में अपना दबदबा कायम रखता था।

स्कूल में हमेशा एक बात दोहराई जाती थी- ‘रघु का तो कुछ नहीं होगा, और अमित अपनी मेधावी प्रकृति के चलते यश प्राप्त कर देश का नाम रोशन करेगा।’

रघु की उद्दंडता लगातार बढ़ती रही। जबकि अमित अपनी तीव्र बुद्धि के बल पर शिक्षा में उन्नति के आयाम प्रतिस्थापित करता रहा।

10वीं के बाद अमित शहर चला गया। रघु ने पढ़ाई छोड़ दी और किसी लोकल नेता के पीछे लग गया, जिसने उसमें ‘जोश’ देखा, ‘दिशा’ नहीं। रघु ने शराब की अवैध बिक्री शुरू कर दी। एक दो बार वह जेल भी गया लेकिन नेता का प्रभाव कहें या व्यवस्था की कमी वह हर बार साफ बच कर आता रहा। हां पुलिस ने कई बार उसे पीटा भी। इस बीच वह अपने नेता की पार्टी में पदाधिकारी भी बना दिया गया। अब तो रघु और भी आक्रामक हो गया। आंदोलनों के नाम पर धरना प्रदर्शन में भाग लेना और तोडफ़ोड़ करना उसका नियम बन गया। स्थानीय जनता में वह दबंग नेता के रूप में चर्चित हो गया। शुरू में रघु ने कुछ चुनाव भी लड़े जिनमें उसे सफलता नहीं मिली।

उधर अमित ने प्रशासनिक सेवा की तैयारी शुरू की, संघर्ष किया, और आखिरकार वह आईएएस अफसर बना।

समय बीतता रहा। आईएएस अमित अब जिलाधिकारी के पद पर पहुंच चुका था। समय के साथ और अपने प्रशासनिक दायित्व को निभाते निभाते अमित रघु को बिल्कुल भुला चुका था।

एक दशक बीत गया। अब अमित जिस जिले का जिलाधिकारी था वहाँ एक दिन उसके पास सूचना आती है ‘प्रदेश के नवनियुक्त कैबिनेट मंत्री श्री रघु यादव जिले के दौरे पर आ रहे हैं।’

रघु नाम सुनकर अमित कुछ चौंका उसे अपने बचपन के शरारती और उद्दंड मित्र रघु की याद आ गई। लेकिन उसने वह नहीं सोचा जो होने वाला था।

हेलीपैड पर मंत्री जी के स्वागत  की तैयारियाँ होती हैं। पुलिस सुरक्षा के बीच कार्यकर्ताओं की भीड़, बैंड-बाजों की गूंज, मंत्री जी जिंदाबाद के नारे। डीएम अमित प्रशासनिक दायित्व का निर्वहन करते हुए मंत्री जी के आगमन की प्रतीक्षा में खड़े अपने मातहतों को जरूरी दिशानिर्देश दे रहे थे। तभी आसमान में हेलीकॉप्टर की गडग़ड़ाहट सुनायी देती है। कार्यकर्ताओं के नारे जोर पकडऩे लगते हैं। हर कोई मंत्री जी को अपना चेहरा दिखाने की होड़ में लगता है। अमित और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी बमुश्किल उन्हें नियंत्रित करते हैं।

हेलीकॉप्टर के लैंड करते ही मंत्री के रूप में जो शख्स उतरता है उसे देखकर अमित हक्का बक्का रह जाता है। ये तो वही है। रघु वही रघु जिसके चेहरे में ही क्रूरता झलकती थी आज वही चेहरा मंद किन्तु कुटिल मुस्कान लिये एक सम्मानित शख्स के रूप में उसके सामने था।

अरे ये तो वही वही रघु, पक्के सूट में, हाथ हिलाता, मुस्कराता।

अमित अभी अचंभे से बाहर आता कि एक और अचम्भा कार्यकर्ताओं की भीड़ में सबसे आगे खड़े वही गणित शिक्षक, जो अब वृद्ध हो चले हैं, रघु को माला पहनाते हैं, और  कहते हैं — ‘हमारे छात्र रघु ने प्रदेश का गौरव बढ़ाया है।’

अमित यानी डीएम साहब भी खड़े हैं, विनम्र मुद्रा में, एक सरकारी अधिकारी की गरिमा के साथ। अचानक मंत्री जी रघु की निगाहें डीएम साहब से मिलती हैं और मंत्री जी पहचानने वाले अंदाज में जीत की मुस्कान चेहरे पर लिये हुये अमित की ओर देखते हैं।

अमित भी मुस्कराने की कोशिश करता है पर असफल हो जाता है। अपने और रघु के वर्तमान को वह तोल रहा था। पलड़ा किसका भारी है? अमित समझ नहीं पा रहा था।

कार्यक्रम के बाद रघु ने डीएम साहब अमित को अकेले में भेंट करने के लिए बुलाया था।

अमित चौंक उठा था। क्या रघु उसे पहचान गया? उसे याद आ गई वह बात जब उसने स्कूल के दिनों में रघु से कहा था कि रघु भय्या, ऐसे तो तेरी जिंदगी बर्बाद हो जायेगी। पढऩा लिखना बहुत जरुरी है। तभी आगे कोई नौकरी मिलेगी।

तब रघु हंस दिया था। वह बोला ये बेकार की बात है अमित पढ़ाई से कुछ नहीं होता। यहाँ की व्यवस्था ही ऐसी है। पढ़ लिखकर नौकरी मांगी जाती है। और मैं नौकरी मांगने वाला नहीं नौकरी देने वाला बनूंगा।

अमित ने रघु की इस बात का उस समय जमकर विरोध किया था। रघु तुम बहुत बड़ी गलती कर रहे हो।

उस संवाद को याद करते हुए डीएम अमित मंत्री जी के कमरे में कब पहुंच गया कि उसे अभिवादन का भी ध्यान नहीं रहा।

रघु (हँसते हुए)

‘क्या सोचा था, और क्या हो गया ना अमित? तू पढ़ता रहा मैं जनता में घुस गयाज् किस्मत देख!’

अमित मुस्कराकर-‘तू आज बड़ा आदमी बन गया, रघु। लेकिन मैं सोचता हूँ, हमारे शिक्षक जिनकी आँखों में तू डर लाता थाज् आज उन्हीं की आँखों में गर्व है। ये समय का खेल है, शायद।’

रघु-‘समय नहीं, चालाकी और अवसर। तू काबिल था मैं होशियार हो गया।’

अमित अपने सरकारी बंगले की खिड़की से मंच की ओर देखता है — जहाँ सम्मान के पट्टों से लदा रघु कैमरे के फ्लैश में मुस्कराता है।

कहानी यही सवाल छोड़ जाती है क्या सफलता केवल योग्यता का परिणाम है? या कभी-कभी यह केवल दिशा और समय की चाल होती है? (विभूति फीचर्स)

 

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