अभी हमारे पास न आओ…
झूठा मूठा प्यार दिखा कर।
हमसे अच्छा जो मिल जाए ,
जाओ उसको गले लगाओ।
रहने दो अब हमें अकेली ,
बातों में तुम मत उलझाओ।
दिखा रहे हो व्यर्थ युगों से…
हमें हवा में किले बनाकर।
अभी हमारे पास न आओ
झूठा -मूठा प्यार दिखाकर।
स्वर्ण काल तो बीत रहा है ,
नित कहते हो ,”कल आऊँगा”
कहते हो जब,”आऊँगा तो ,
पुनः न मैं वापस जाऊँगा ”
नित दिन फुसलाया करते हो..
हमें यही तो बता-बताकर।
अभी हमारे पास न आओ…
झूठा-मूठा प्यार दिखाकर।
ऐसे छलिया से हम भी अब,
जाओ ! कोई बात न करते।
खो जाओ तुम भी सपनों में,
हम भी काली रात न करते।
हुआ ज्ञात रोना पड़ता है..
इक पत्थर से प्रीत लगाकर।
अभी हमारे पास न आओ
झूठा-मूठा प्यार दिखाकर।।
– अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली