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भावपूर्ण भावों की दिव्यांजलि है (काव्य संग्रह) – सुधीर श्रीवास्तव

neerajtimes.com – दिव्यांजलि काव्य संग्रह डॉ कृष्ण कांत मिश्र का पहला काव्य संग्रह है।लोक रंजन प्रकाशित मनोहारी मुखपृष्ठ और साफ सुथरी मुद्रण इस वाली पुस्तक में ‘आशीर्वचन’ में डा. यमुना शंकर पांडे प्रकाश के अनुसार डा. कृष्ण की रचनाएं आधुनिक वैश्विक परिदृश्य में बदलाव की ओर उन्मुख समाज का सफल प्रतिबिंबन हैं।

डॉ ओमप्रकाश मिश्र मधुव्रत अपनी शुभकामनाओं के साथ कृष्ण कांत मिश्र में उज्जवल साहित्यिक भविष्य की उम्मीद संजोते हुए मानते हैं कि आपकी रचनाएं सामाजिक, राष्ट्रीय एवं देश-काल परिस्थितियों के लिए एक प्रतिबद्धता से प्रमाणित हैं।

पूर्णिमा पांडे ‘पूर्णा’ के अनुसार प्रस्तुत संग्रह एक सराहनीय प्रयास है।

प्रथम संग्रह होने के बावजूद कम शब्दों वाले ‘मनोभाव’ में कवि की महज चार पंक्तियां उनके लेखकीय दृष्टिकोण प्रदर्शित करने की दिशा में समर्थ लगती हैं-

सुरसरि- सी पावन जो बहती।

शायद वीणा मधुरिम बजती।।

सहज सरल मेरे जीवन की,

यह दिव्यांजलि कविता कहती।।

कृष्णकांत मिश्र  की ” दिव्यांजलि” काव्य संग्रह में कुल 100 पृष्ठों और 85 रचनाओं वाली दिव्यांजलि पुस्तक में संग्रहीत सर्वप्रथम “वंदे वाणी विनायको” उनकी प्रथम रचना है

वंदे वाणी विनायको, माँ सरस्वती,गुरु माँ और पिता की वंदना सुंदर भावभरी वंदनाओओं के बाद काव्य श्रृंखला में  “वो लम्हे बुला रहे हैं” बीते दिनों की स्मृतियों के माध्यम से संजोने की कोशिश है तो ‘मेरे गांव की सरकारी स्कूल’ में बचपन प्राथमिक शिक्षा के दौर में विचरण करने की कोशिश है।, ‘माँ! तू सबसे भोली है’ माँ के व्यक्तित्व /व्यवहार का चित्रण करने का प्रयास तुम हो डोली के जैसी को हास्य रुम में उकेरने की उत्सुकता के बीच मन की मुराद का सहज खाका खींचते हूए कितनी तमन्ना थी पहली मुलाकात की स्पष्टवादिता के साथ एक मीठी शिकायत भी की गई है मैं कब तक बोलूं।

श्री राम वंदना ,मां अंजनी के लाल,  गुरु ही है ज्ञान की खान जैसी अनेकों रचनाएं कृष्णकांत जी के मनोभावों को दर्शाती है।

विविध काव्य विधाओं और विभिन्न विषयों को लेकर सृजित काव्य संग्रह में धार्मिक, सामाजिक, व्यवहारिक, पारंपरिक रीति रिवाजों संस्कारों और बाल कविताएं भी हैं। रचनाएँ नं जहां छोटी छोटी किंतु पाठकों को आकृष्ट करने और बाँधे रखने में सक्षम प्रतीत होती है।

कृतिकार ने सरल, सहज ढंग से शब्दों का चयन कर अपने और अपनी रचनाधर्मिता को आम पाठक तक पहुंच बनाने का निर्मल प्रयास किया है। भले ही यह उनकी प्रथम कृति है, लेकिन की भविष्य का बेहतर संकेत भी दे रही है। जरुरत है समय के साथ सचेत रहते हुए और… और….. बेहतर करने की स्व कोशिश को विकसित करते रहने की। आलोचनाओं को सहजता से स्वीकार कर परिमार्जित करते रहने की। क्योंकि आलोचनाएं हमें दृढ़ता और नव जूनून प्रदान करती हैं।

कृति और कृतिकार को असीम शुभेच्छा ओं के साथ…..।

– सुधीर श्रीवास्तव , गोण्डा उत्तर प्रदेश , 8115285921

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