neerajtimes.com – नव संवत्सर का महापर्व गुड़ी पड़वा, वर्ष प्रतिपदा, उगादि, चैत्र मास की नवरात्रि, रामनवमी और फिर हनुमान जयंती। अनेक त्यौहारों का यह समूह भारतीय नव वर्ष का उद्घोष तो है ही, एक स्वर्ण अवसर भी है, यह समझने और जानने का कि वास्तव में हमारी भारतीय संस्कृति कितनी पुरातन, गौरवशाली और समृद्धशाली रही है। पहले हम विक्रम संवत्सर की बात करते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार आगामी 29 मार्च 2025 की संध्याकाल में 4:27 पर विक्रम संवत 2082 की वर्ष प्रतिपदा प्रारंभ हो रही है, जो कि अगले दिन यानी 30 मार्च 2025 को मध्यान्ह 12:49 तक रहने वाली है। क्योंकि इस तिथि में सूर्योदय 30 मार्च को होने जा रहा है। फल स्वरुप वर्ष प्रतिपदा 30 मार्च को मनायी जाना सुनिश्चित है। सर्व विदित है कि हम यह त्यौहार सम्राट विक्रमादित्य द्वारा स्थापित विक्रम संवत के अनुसार आने वाले नव वर्ष के रूप में मनाते चले आ रहे हैं। इतिहास की मानें तो सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को हराने के बाद उस संवत्सर की स्थापना की थी जो अब 2081 वर्ष पुराना हो चुका है और हम 30 मार्च को संवत्सर 2082 की वर्ष प्रतिपदा मनाने जा रहे हैं। जहां तक मानवीय सभ्यता की बात है तो इसे समूचे विश्व में ईस्वी सन के माध्यम से आंका जाता है जो अभी 2025 से साक्षात्कार कर रहा है। दुर्भाग्य जनक बात यह है कि पश्चिमी सभ्यता से दिग्भ्रमित अनेक भारतीय विद्वान भी भारतीय सनातन की पुरातनता को भूलकर ईस्वी सन को ही सर्वाधिक पुरानी सभ्यता प्रतिपादित करने में लगे रहते हैं।
आशय यह कि यदि पश्चिमी सभ्यता को आधार मानकर मानवीय समृद्धि का आकलन किया जाए तो वह केवल 2025 साल पुरानी ही प्रमाणित हो पाती है। जबकि भारतीय संवत्सर 2082 यह प्रतिपादित करता है कि हमारे यहां पश्चिमी दुनिया से लगभग 57 साल पहले विक्रम संवत स्थापित हो चुका था। यह भी इतिहास में दर्ज है कि सम्राट विक्रमादित्य का शासन काल इतना समृद्ध और विकसित रहा है, जिसके जीवंत प्रमाण भारत में आज भी मौजूद हैं और इसकी संपन्नता के उदाहरण दुनिया भर में दिए जाते हैं। दिन के उजाले की तरह सहज सत्य है कि सम्राट विक्रमादित्य भारतीय सभ्यता में पहले शासक नहीं थे। उनके पहले भी अनेक सभ्यताएं भारत वर्ष में स्थापित हुईं और उन्होंने अपने ज्ञान एवं अनुभवों से पूरे विश्व को लाभान्वित किया। यदि कलियुग की ही बात की जाए तो हमारी सभ्यता कम से कम 5000 वर्ष पुरानी तो हो ही जाती है। क्योंकि हमारे ग्रंथ बताते हैं कि द्वापर युग के दौरान आज से लगभग 5124 साल पहले कुरुवंशी महाराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक वर्ष प्रतिपदा के दिन ही हुआ था। सब जानते हैं कि पांडवों के स्वर्गारोहण से पूर्व राजा परीक्षित ने जब भारत का राज्य शासन संभाला तब ही कलयुग का प्रारंभ हो गया था। उसी के प्रभाव से वशीभूत होकर राजा परीक्षित ने एक संत के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया था। फल स्वरुप राजा परीक्षित की मृत्यु सर्पदंश के कारण ही हुई थी। इस वर्णन के हिसाब से देखा जाए तो भारतीय सनातन की गौरवशाली एवं समृद्धशाली सभ्यता का इतिहास 5000 वर्षों से भी अधिक पुराना है। केवल कलयुग की ही काल गणना की जाए तो अभी युगाब्ध 5126 प्रचलन में है। इस आधार पर हमारी सभ्यता 5000 सालों से भी अधिक पुरानी हो जाती है। किंतु महाराज युधिष्ठिर को भी भारतीय सभ्यता का प्रथम शासक नहीं माना गया। उनके पहले भी राजा भरत से लेकर पांडु अथवा धृतराष्ट्र तक कुरुवंशियों की अनेक पीढ़ियों ने भारतवर्ष पर शासन किया है। इन सबकी गणना की जाए तो तब से लेकर अभी तक भारतीय सभ्यता 8 लाख 64000 सालों का बेहद संपन्न दौर पूरा कर चुकी है। इससे भी पहले त्रेता युग में सूर्यवंशियों की स्वर्णिम आभा भारतीय सनातन को अपने ऐश्वर्य और वैभव से दैदीप्यमान करती रही हैं। जिसमें राजा इक्ष्वाकु से शुरू होकर लव कुश तक के राजा विश्व के बहुत बड़े भूभाग पर शासन करते रहे हैं, जिसमें भारतवर्ष सत्ता का केंद्र बना रहा। उस युग की काल गणना कर ली जाए तो उसे गुजरे हुए अभी तक 12 लाख 96 हजार सालों का समय गुजर चुका है। जबकि सूर्यवंश की शुरुआत सतयुग में ब्रह्मा जी से है। ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि, उनके पुत्र कश्यप और फिर विवस्वान से सूर्यवंश का प्रादुर्भाव माना जाता है। राजा हरिश्चंद्र का प्रसंग इसी कालखंड का प्रामाणिक इतिहास है। हमारे धर्मशास्त्र बताते हैं कि महाराजा हरिश्चंद्र का शासन विश्व की सर्वोत्कृष्ट सभ्यताओं, ऐश्वर्य वैभव का स्थापित प्रमाण है। यानि कि भारतीय सभ्यता सतयुग में भी समृद्धशाली रही, जिसे गुजरे हुए कम से कम 17 लाख 28 हजार वर्ष का समय व्यतीत हो चुका है।
इस प्रकार देखें तो भारतीय सभ्यता स्वत: ही सनातन सिद्ध हो जाती है। सनातन का मतलब जो सृष्टि के प्राकट्य के साथ ही था, आज भी है और सदैव बना रहेगा। विश्व की अन्य सभ्यताएं भले ही बंदरों को मनुष्यों का पूर्वज मानती रही हैं। लेकिन हमारे लाखों साल पुराने वेद, पुराण, शास्त्र यह प्रतिपादित करते हैं कि भारतीय सभ्यता इस ब्रह्मांड के प्राकट्य के साथ ही अस्तित्व में आई और युगों युगों से पूरे विश्व का मार्गदर्शन करती रही। कालांतर में विदेशी लुटेरों, आक्रांताओं ने सोने की चिड़िया के नाम से विश्व प्रसिद्ध भारतवर्ष पर निरंतर आक्रमण किये। उसे लूटा खसोटा तथा हर उस प्रतीक को मिटाने के जी तोड़ प्रयास किए गए, जो भारतीय सभ्यता की सनातनता को प्रमाणित करते रहे। हमारी गौरवशाली और समृद्धशाली संस्कृति को मिटाने के हर संभव प्रयास किए गए। इसके बावजूद भी आज जब खुदाई के दौरान धरती के गर्भ में पुराने विकसित नगर दिखाई देते हैं, तब सत्यता सर्वोच्च गर्जना के साथ उद्घोष करती है कि विश्व में भारत से पुरानी सभ्यता और कोई नहीं। वर्ष प्रतिपदा स्वयं यह बताती है कि वह आज ही का दिन था, जब ब्रह्मा जी द्वारा ब्रह्मांड की सृष्टि की शुरुआत की गई थी। क्योंकि इसी दिन सृष्टि अस्तित्व में आई तो सतयुग की शुरुआत भी वर्ष प्रतिपदा से ही मानी जाती है। वह आज ही का दिन था जब श्री हरि विष्णु जी ने प्रलय के दौरान मत्स्य अवतार लेकर प्रकृति के बीजों का संरक्षण व संवर्धन किया था। यही वह दिन है जब श्री राम ने त्रेता युग में वानर राज बालि का वध किया था।
और भी बहुत सारे शास्त्रीय, पौराणिक, वैदिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक प्रसंग हैं, जो वर्ष प्रतिपदा को प्रमाणिकता प्रदान करते हैं। साथ में यह प्रतिपादित भी करते हैं कि भारतीय संस्कृति का वास्तविक स्वरूप सनातन ही है। जो सृष्टि के प्राकट्य के साथ ही अस्तित्व में थी, वर्तमान में है और भविष्य में सदैव बनी रहेगी। हर भारतीय को इस त्यौहार पर गर्व करना चाहिए। देश विदेश में भारतीय संस्कृति का परचम लहराने वाले सभी सनातनी हिंदुओं अर्थात भारतीयों को वर्ष प्रतिपदा की ढेर सारी बधाइयां और हार्दिक शुभकामनाएं।(विभूति फीचर्स)