मनोरंजन

भारत में गर्मी का जल्दी आना और लू का बढ़ना –डॉ. सत्यवान सौरभ

neerajtimes.com – बढ़ते तापमान से कृषि, जल संकट, सार्वजनिक स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। फरवरी में असामान्य रूप से अधिक गर्मी, रात के तापमान में वृद्धि, समुद्री तापमान का असर और शहरी हीट आइलैंड प्रभाव इस समस्या को और गंभीर बना रहे हैं। इसका असर शिक्षा, श्रम उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा पर भी पड़ रहा है।

भारत में लू की घटनाएँ जलवायु परिवर्तन के कारण तेज़ी से बढ़ रही हैं। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, मैदानी इलाकों में जब तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है और यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहती है, तो इसे लू के रूप में परिभाषित किया जाता है। 2024 में भारत ने 554 लू के दिन अनुभव किए, जबकि 2023 में यह संख्या 230 थी। यह वृद्धि कृषि, जल उपलब्धता और सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही है, जिससे तत्काल शमन उपायों की आवश्यकता है।

फरवरी, जो आमतौर पर सर्दियों का महीना होता है, अब अत्यधिक गर्मी का अनुभव कर रहा है। ओडिशा, तेलंगाना और महाराष्ट्र में फरवरी 2025 में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक दर्ज किया गया, जो जलवायु परिवर्तन की ओर इशारा करता है। उदाहरण: फरवरी 2025 में मुंबई ने 38.7 डिग्री सेल्सियस का तापमान दर्ज किया, जो पांच वर्षों में सबसे गर्म फरवरी का दिन था। इसने दैनिक जीवन को बाधित किया और गर्मी से संबंधित बीमारियों में वृद्धि की। वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार और तीव्र हीटवेव देखी जा रही हैं, जिससे जनसंख्या पर भारी दबाव पड़ रहा है। रात के तापमान में भी अप्रत्याशित वृद्धि हो रही है। 31 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सामान्य से 1°C अधिक रात का तापमान दर्ज किया गया, जबकि 22 राज्यों में 3°C-5°C की वृद्धि देखी गई। दिल्ली में 2024 में 74 वर्षों की सबसे गर्म फरवरी की रात दर्ज की गई, जिससे कमजोर वर्ग के लिए रिकवरी का समय कम हो गया। समुद्री हीटवेव अंतर्देशीय तापमान को बढ़ाती हैं और मानसून के पैटर्न को प्रभावित करती हैं। 2023 में बंगाल की खाड़ी में समुद्री हीटवेव के कारण पूर्वी भारत में मानसून में देरी हुई और प्री-मानसून गर्मी बढ़ी। कंक्रीट संरचनाएँ, कम हरियाली और प्रदूषकों की उपस्थिति से शहरी क्षेत्रों में गर्मी अधिक रहती है। अप्रैल 2023 में अहमदाबाद के शहरी क्षेत्रों में तापमान आसपास के ग्रामीण इलाकों से 3-4 डिग्री सेल्सियस अधिक था।

राज्यों के बीच समन्वय सुनिश्चित करते हुए राष्ट्रीय अनुकूलन योजना में हीटवेव शमन को शामिल करना आवश्यक है। अहमदाबाद की हीट एक्शन प्लान (2013) हर साल 1190 मौतों को रोकने में मदद करता है। शहरी नियोजन में हरित इमारतों, निष्क्रिय शीतलन और गर्मी प्रतिरोधी सामग्रियों का उपयोग बढ़ाना चाहिए। तेलंगाना की कूल रूफ नीति (2021) ताप-परावर्तक छतों को बढ़ावा देती है, जिससे इनडोर तापमान कम होता है। वृक्षारोपण, छत पर बागवानी और जल निकायों के संरक्षण से तापमान कम किया जा सकता है।  दिल्ली की शहरी वन पहल ने कई हॉटस्पॉट में स्थानीय तापमान को 2-3 डिग्री सेल्सियस तक कम किया। स्थानीय मौसम निगरानी, हीटवेव पूर्वानुमान और शहरी हीट आइलैंड मानचित्रण का विस्तार किया जाना चाहिए। कमज़ोर श्रमिकों के लिए हीट इंश्योरेंस, समायोजित कार्य घंटे और शीतलन आश्रय सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। राजस्थान के हीट इंश्योरेंस पायलट (2023) ने अत्यधिक गर्मी वाले दिनों में दैनिक वेतनभोगी श्रमिकों को वित्तीय मुआवज़ा प्रदान किया।

अत्यधिक गर्मी के कारण स्कूलों में गर्मी की छुट्टियाँ लंबी हो सकती हैं, जिससे पाठ्यक्रम पूरा करना मुश्किल हो जाता है। कई स्कूलों में पर्याप्त शीतलन व्यवस्था नहीं होती, जिससे छात्रों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है। परीक्षा के समय लू पड़ने से छात्रों का प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है। अत्यधिक गर्मी के कारण श्रमिकों की उत्पादकता में कमी आती है, खासकर निर्माण, खेती और अन्य बाहरी कामों में। बिजली की खपत बढ़ने से ऊर्जा संकट उत्पन्न हो सकता है, जिससे बिजली कटौती बढ़ती है। हीटवेव के कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ बढ़ती हैं, जिससे अस्पतालों पर दबाव बढ़ता है और स्वास्थ्य सेवा का खर्च बढ़ जाता है। झीलों, तालाबों और नदियों का जल स्तर तेजी से गिरता है, जिससे पेयजल की समस्या गहराती है। भूजल स्तर में गिरावट होती है, जिससे सिंचाई और पेयजल की आपूर्ति प्रभावित होती है। जंगलों में आग लगने की घटनाएँ बढ़ती हैं, जिससे जैव विविधता को नुकसान होता है। गर्मी के कारण कई पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं का पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है। गेहूं, धान और अन्य प्रमुख फसलों की पैदावार में गिरावट आती है, जिससे खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है। अत्यधिक गर्मी और जल संकट के कारण पशुपालन भी प्रभावित होता है।

अधिक गर्मी सहने वाली और कम पानी में पनपने वाली फसलों का विकास और उपयोग किया जाए। किसानों को माइक्रो-इरिगेशन तकनीक (टपक सिंचाई) अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। हरी छतें, जलाशयों और खुले हरे क्षेत्रों को बढ़ावा देना। सार्वजनिक स्थलों पर पेड़ों की छाया और वाटर स्प्रे सिस्टम लगाना। स्मार्ट शहरों में तापमान अनुकूलन तकनीकों को अपनाना। हीट-रेसिस्टेंट निर्माण सामग्री और ऊर्जा-कुशल डिज़ाइन को बढ़ावा देना। समुद्र के तापमान को नियंत्रित करने के लिए वैश्विक और क्षेत्रीय प्रयासों को मजबूत करना। तटीय इलाकों में मैंग्रोव वनों को पुनर्जीवित करना, जो प्राकृतिक रूप से तापमान को संतुलित करने में सहायक होते हैं। यूरोप का हीट एक्शन प्लान: फ्रांस और स्पेन ने हीटवेव के दौरान कूलिंग सेंटर और सार्वजनिक अलर्ट सिस्टम लागू किए हैं। ऑस्ट्रेलिया का जल प्रबंधन: सूखा-प्रभावित क्षेत्रों में जल संचयन और संरक्षण के लिए प्रभावी नीतियाँ लागू की गई हैं। अमेरिका का ‘ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर’ प्रोग्राम: शहरी इलाकों में हरियाली और छायादार क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएँ चलाई जा रही हैं।

भारत में बढ़ती गर्मी और लू के प्रभावों को कम करने के लिए बहुआयामी रणनीति अपनाने की आवश्यकता है। इसके लिए सरकार, समाज और वैज्ञानिक समुदाय को मिलकर दीर्घकालिक समाधान विकसित करने होंगे। जलवायु अनुकूलन, स्मार्ट शहरी योजना, कृषि नवाचार और वैश्विक सहयोग से ही इस चुनौती से निपटा जा सकता है। गर्मी की लहरों के बढ़ते खतरे के कारण जलवायु-अनुकूलन योजनाओं को लागू करना आवश्यक हो गया है। प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, हीट एक्शन प्लान और लचीले बुनियादी ढांचे को मजबूत करना महत्वपूर्ण है। शहरी हरियाली, परावर्तक छतें और टिकाऊ जल प्रबंधन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। साथ ही, महात्मा गांधी नरेगा जैसी योजनाओं का विस्तार और शीतलन-केंद्रित शहरी नीतियों को लागू करना सार्वजनिक स्वास्थ्य, आजीविका और भविष्य की स्थिरता को सुनिश्चित करने में सहायक होगा।

– डॉo सत्यवान सौरभ, 333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा– 127045, मोबाइल :9466526148, 01255281381

Related posts

गजल – प्रियदर्शिनी पुष्पा

newsadmin

दिसम्बर-जनवरी – विनोद निराश

newsadmin

कितने दीये जलाये – विनोद निराश

newsadmin

Leave a Comment