यार की बातों ने हमकों आज घायल कर दिया,
जो छुपाया दर्द भीतर, आज चोटिल कर दिया।
जो मिला अब तक तजुर्बा एक नया देकर गया,
हादसों ने बस हमारे दिल को बे-दिल कर दिया।
कल तलक अनजान थे हम बात ये सच है मगर,
आज दूरी ने तेरी जीना भी मुश्किल कर दिया।
अब तेरी दूरी सताती है मगर हम क्या करें,
आज अपनी ज़ात को तुझ में ही शामिल कर दिया।
खुद को देखा उस में तू ही जब हमें दिखने लगा,
आईने को हमने फिर तेरे मुक़ाबिल कर दिया।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़