वासंती ने प्रीत सिखाया
उफ्फ फागुन द्वारे पर आया।
बिखरे बिखरे से है पलाश
आम्र मंजर भी बौराया ।
उफ्फ फागुन द्वारे पर आया या।
रमणी मुख पर सोहे अञ्जन
फागुन से तन मन अतिरञ्जन,
रंग दिया था तुमने कैसे
सोच-सोच कर सिहरी काया।
उफ्फ फागुन द्वारे पर आया।
गुजरा वह क्षण याद मदन क्या,
कितना करते थे मनुहार।
सकुचाती शर्माती सी मैं
दिल अपना तो गई थी हार।
नैनो से कर नेह की बारिश
मीत ने प्रीत से था नहलाया।
उफ्फ फागुन द्वारे पर आया।
उफ्फ्फ फागुन द्वारे पर आया
– सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर