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बन्धे डोरी से – सविता सिंह

जब भी मिलते थे हम, तो जनाब

हर बार दुपट्टे में वो बांध देते हैं गाँठें,

और कहते बाँधे है भविष्य

जो हमे संग संग है बाँटने|

क्या कहे, किसी में घर का नक्शा है

तो किसी में दीवार की चित्रकारी,

कैद है उनमे वो सब जो संग गुजारी,

बच्चों के नाम और संग में किलकारी

कभी तो खस्ती पूरी आलू की तरकारी|

लड़की हुई तो रखेंगे नाम नंदिनी,

मान भी जाओ होगी तुम ही संगिनी|

चाहे जज्बात या ना रुकने वाली मुस्कान,

होंगे सारे पूरे हमारे जो भी हो अरमान|

कुछ ऐसे ही गाँठों से प्रेम की पड़ी नींव

धीरे-धीरे वो सारे हो रहे हैं सजीव|

वो लखनवी चिकन की कुर्ती और चुन्नी

सब होंगे पूरे जो हमने है बुनी|

सर दर्द में ,अमृतांजन की भी डिब्बी|

कैद उस चुन्नी में कई और हैं सपने

हमने खाई है कसम पूरे उन्हें करने|

गुनगुनी धूप और बारिश के फुहारे

पल में हो गये पूरे सपने सारे हमारे|

कभी ना खत्म होने वाली चाहत की गाँठें

गिरवी रहेंगी ताउम्र वो हमारे दिल में|

– सविता सिंह मीरा , जमशेदपुर

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