मनोरंजन

गीतिका – मधु शुक्ला

सर्वाधिक संसार में, पाता  मान‌  चरित्र।

प्रेम और विश्वास की , है पहचान चरित्र।।

 

जीवन में जो भी रहें, व्यवहारिक संबंध।

उनकी रखता सर्वदा, कायम आन चरित्र।।

 

खानदान परिवार में , मेल-जोल सहयोग।

लाता है सम्मान पर , दे  मुस्कान  चरित्र।।

 

चमके धन,यश से अधिक,चाल चलन का दाग।

इसीलिए  करते  सदा ,  ज्ञानी  गान  चरित्र।।

 

सब कुछ खो कर फिर गहे, कर के यत्न मनुष्य।

पर  वापस  पाता  नहीं ,  खोई  शान  चरित्र।।

—  मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश

Related posts

क्या जघन्य अपराधियों की न सुनी जाये पैरोल की अर्ज़ी? – डॉ. सत्यवान सौरभ

newsadmin

ग़ज़ल – विनोद निराश

newsadmin

कविता – विनोद निराश

newsadmin

Leave a Comment