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तारापुर गोली कांड: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अविस्मरणीय बलिदान गाथा – कुमार कृष्णन

neerajtimes.com – भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में 15 फरवरी का दिन अविस्मरणीय है। अब यह दिन तारापुर दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज ही के दिन वर्ष 1931में  मुंगेर जिले के तारापुर थाना में तिरंगा फहराते हुए स्वतंत्रता की राह में 60 क्रांतिकारी शहीद हुए थे।

मुंगेर का तारापुर आजादी की लड़ाई के लिए काफी पहले से उत्साहित था। वतन परस्ती का जज्बा हर किसी दिल में धड़क रहा था। रामप्रसाद बिस्मिल के शब्दों में—

‘अजल से वे डरें जीने को जो अच्छा समझते हैं।

मियाँ! हम चार दिन की जिन्दगी को क्या समझते हैं?’

जब हर किसी के दिल में यही जज्बा था, तो ब्रिटिश हुकूमत की नींद हराम होनी ही थी। इसकी मुख्य वजह थी कि आजादी के लिए जब भी कोई बड़ी लड़ाई हुई,उसमें यहां के लोग जी-जान से कूद पड़े।  ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ चल रहे आंदोलन के दमन के लिए नौकरशाही को काफी जोर जुल्म का रास्ता अख्तियार करना पड़ता था। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी देने बाद पूरे देश में जनाक्रोश उभरा। यहां के जुलूस पर भी भीषण लाठी चार्ज हुआ।1931 के गांधी इर्विन समझौते को रद्द किए जाने के विरोध में कांग्रेस द्वारा सरकारी भवन से यूनियन जैक उतारकर तिरंगा फहराने के लिए पहल की गई थी।कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष शार्दुल सिंह कविष्कर ने 15 फरवरी, 1932 को सभी सरकारी भवनों पर तिरंगा फहराने का आह्वान किया । 13 फरवरी, 1932 को सुपौर के जमुआ गाँव में इस आशय का निर्णय लिया गया और मदन गोपाल सिंह के नेतृत्व में 5 स्वयंसेवकों का धावा दल गठित किया गया।

15 फ़रवरी 1932 की दोपहर सैकड़ों आजादी के दीवाने मुंगेर जिले के तारापुर थाने पर तिरंगा लहराने निकल पड़े।उन अमर सेनानियों ने हाथों में राष्ट्रीय झंडा और होठों पर वंदे मातरम, भारत माता की जय नारों की गूंज लिए हँसते-हँसते गोलियाँ खाई थी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े गोलीकांड में देशभक्त पहले से लाठी-गोली खाने को तैयार हो कर घर से निकले थे। 50 से अधिक सपूतों की शहादत के बाद स्थानीय थाना भवन पर तिरंगा लहराया ।

आजादी मिलने के बाद से हर साल 15 फ़रवरी को स्थानीय जागरूक नागरिकों द्वारा तारापुर दिवस मनाया जाता है। जालियांवाला बाग से भी बड़ी घटना थी तारापुर गोलीकांड। सैकड़ों लोगों ने धावक दल को अंग्रेजों के थाने पर झंडा फहराने का जिम्मा दिया था। और उनका मनोबल बढ़ाने के लिए जनता खड़ी होकर भारतमाता की जय, वंदे मातरम् आदि का जयघोष कर रही थी। भारत माँ के वीर बेटों के ऊपर अंग्रेजों के कलेक्टर ई ओली एवं एसपी डब्ल्यू फ्लैग के नेतृत्व में गोलियां दागी गयी थी। गोली चल रही थी लेकिन कोई भाग नहीं रहा था। लोग डटे हुए थे। घटना के बाद अंग्रेजों ने शहीदों के शव वाहनों में लाद कर सुलतानगंज की गंगा नदी में बहा दिये थे। शहीद सपूतों में से केवल 13 की ही पहचान हो पाई थी। ज्ञात शहीदों में चंडी महतो (चोरगांव), शीतल चमार (जलालाबाद,असरगंज), शुक्कल सोनार (तारापुर),संत पासी (तारापुर), झोंटी झा (सतखरिया),विश्वनाथ सिंह (छतहरा) सिंहेश्वर राजहंस (बिहमा),बदरी मंडल (धनपुरा), वसंत धानुक (लौढ़िया), रामेश्वर मंडल (पड़भाड़ा), गैबी सिंह (महेशपुर), अशर्फी मंडल (कष्टीकरी) तथा महिपाल सिंह (रामचुआ) थे। 31 अज्ञात शव भी मिले थे, जिनकी पहचान नहीं हो पायी थी। और कुछ शव तो गंगा की गोद में समा गए थे।

इस घटना पर तत्कालीन बिहार,उड़ीसा विधान परिषद में 18 फरवरी 1932 को सच्चिदानंद सिन्हा ने अल्प सूचित प्रश्न पूछा था। मुख्य सचिव ने घटना को स्वीकार किया था। ब्रिटिश पार्लियामेंट में भारत के सचिव सर सैमुअल होर ने भी इस घटना की जानकारी दी थी। पूर्व राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपनी आत्मकथा के पृष्ठ संख्या 366 पर इस घटना का उल्लेख किया है। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी 1942 में तारापुर की एक यात्रा में 34 शहीदों के बलिदान का उल्लेख करते हुए कहा था “ द फेसेस आफ द डेड फ्रीडम फाइटर वेयर ब्लैकेंड इन फ्रंट आफ द  रेसिडेंट आफ तारापुर।“ यानी तारापुर निवासियों के सामने मृत स्वतंत्रता सेनानियों के चेहरों पर कालिख पोत दी गई। प्रख्यात लेखक मन्मथनाथ गुप्त, डीसी डिंकर, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, रामवृक्ष बेनीपुरी, रणवीर सिंह वीर, चतर्भुज सिंह भ्रमर, डॉ. देवेंद्र प्रसाद सिंह, पूर्व विधायक जयमंगल सिंह शास्त्री, काली किंकर दत्ता ने भी इस घटना को अपनी लेखनी में पिरोया है। चार अप्रैल 1932 को दिल्ली के अखिल भारतीय कांग्रेस महाधिवेशन में तारापुर के अमर शहीदों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की गई थी। 15 फरवरी को संपूर्ण देश में तारापुर दिवस प्रतिवर्ष मनाने का निर्णय लिया गया। तारापुर शहीद दिवस मनाने का सिलसिला 1947 तक जारी रहा। लेकिन आज़ादी के बाद इसे भुला दिया गया।

इतिहासकार डी सी डीन्कर ने अपनी किताब “ स्वतंत्रता संग्राम में अछूतों का योगदान “ में भी तारापुर की इस घटना का जिक्र करते हुए विशेष रूप से संता पासी के योगदान का उल्लेख किया है।

तारापुर गोलीकांड में 75 राउंड गोलियां चलाई गई थी। शहीदों के नाम से यह स्पष्ट है कि सभी जाति-वर्ग के लोगों ने मिलकर अपने खून से आजादी लिखी है। खौजरी पहाड़ में तारापुर थाना पर झंडा फहराने की योजना बनी थी। खौजरी पहाड़, मंदार, बाराहाट और ढोलपहाड़ी तो जैसे क्रांतिकारियों की सुरक्षा के लिए ही बने थे। प्रसिद्ध क्रान्तिकारी सियाराम-ब्रह्मचारी दल भी इन्हीं पहाड़ों में बैठकर आजादी के सपने देखा करते थे। थाना बिहपुर से लेकर गंगा के इस पार बांका-देवघर के जंगलों-पहाड़ों तक क्रांतिकारियों का असर बहुत अधिक हुआ करता था। मातृभूमि की रक्षा के लिए जान लेने वाले और जान देने वाले दोनों तरह के सेनानियों ने अंग्रेज सरकार की नाक में दम कर रखा था। तारापुर के सक्रिय समाजसेवी चंदर सिंह राकेश के अनुसार—’ अमर शहीदों की स्मृति में  तारापुर थाने के सामने शहीद स्मारक भवन का निर्माण 1984  में पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह ने करवाया था। तारापुर के प्रथम विधायक बासुकीनाथ राय, नंदकुमार सिंह ,जयमंगल सिंह,हित्लाल राजहंस आदि के प्रयास से शहीद स्मारक के नाम पर एक छोटा सा मकान खड़ा हो गया।’मुंगेर के तत्कालीन आरक्षी अधीक्षक ध्रुव नारायण गुप्ता की पहल पर 15 फरवरी 1932 को शहीद हुए स्वतंत्रता सेनानियों की याद में मुख्य तिराहे पर उनकी प्रतिमा स्थापित कराने का निर्णय लिया गया था। मामला इतना लोकप्रिय हुआ कि बिहार सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, स्वास्थ्य मंत्री सह स्थानीय विधायक शकुनी चौधरी, बिहार सरकार के मंत्री शिवानंद तिवारी द्वारा प्रतिमा स्थापना की घोषणा सरकारी पैसे से की गयी और विधिवत शिलान्यास भी कराया गया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 31 जनवरी 2021 को मन की बात कार्यक्रम में इन आजादी के नायकों की चर्चा की। “15 फरवरी 1932 को, देशभक्तों की एक टोली के कई वीर नौजवानों की अंग्रेजों ने बड़ी ही निर्ममता से हत्या कर दी थी। उनका एकमात्र अपराध यह था कि वे ‘वंदे मातरम’ और ‘भारत मां की जय’ के नारे लगा रहे थे। मैं उन शहीदों को नमन करता हूं और उनके साहस का श्रद्धापूर्वक स्मरण करता हूं।”

15 फरवरी, 2022 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से शहीद स्मारक तारापुर, मुंगेर में शहीदों की मूर्ति का अनावरण किया तथा शहीद पार्क एवं पुराने थाना परिसर में पार्क विकास कार्य का भी लोकार्पण किया।

देश की स्वतंत्रता के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाले इन वीरों के लिए अब तो बस यही कहा जा सकता है कि

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,

वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।(विनायक फीचर्स)

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