गुजारिश
है कि करें गुफ़्तगू ,
चलें अपनों से, मन की कहते !! 1 !!
फ़न्न
हुनर है ये खूबी,
कि करें, आनंद बाँटते गुफ़्तगू !! 2 !!
तबियत
होए चले हमारी प्रसन्न,
जब कोई करे, गुफ़्तगू हमसे !! 3 !!
गूथते
चलें, बातों को पिरोएं
और विद्वता से अपनी रस बिखेरें !! 4 !!
गुफ़्तगू
करना है एक कला,
आओ इससे जीवन को खिलाए चलें !! 5 !!
स्वयं ग़लती मानना – सुनील गुप्ता
स्वयं
से हुई हो कोई ग़लती,
तो उसे, समय रहते स्वीकारें !
स्वयं ग़लती मानना है अच्छा……,
सदैव चलें अपनी भूल को सुधारते !!1!!
ग़लती
मानना है बड़प्पन की पहचान,
चलें सदा उससे कुछ सीखते !
कभी न भूलें, की गई ग़लतियों को….,
चलें उसके लिए, प्रयाश्चित करते !!2!!
मानना
कि, हुई है हमसे ग़लती
यही सिद्ध करती हमारी सहृदयता !
चलें सदैव सभी को संग-साथ लेकर…..,
और दिखलाएं अपनी हृदय की उदारता !!3!!
– सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान