चंद पग था साथ चलना,
और वो तुम कर न पाये।
कोटिश: सौगंध तुमने ,
खा लिए थे प्रेम पथ में।
किन्तु उस गंतव्य तक आरूढ
रह पाये न रथ में।
जी लिए कुछ हर्ष के क्षण-
साथ तुम पर मर न पाये ।
और वो तुम–
जब मिले थे तो बहुत थे,
घाव दोनों ही हृदय में।
और सोचा था मिलेंगे,
चैन द्वय के चिर विलय में।
किन्तु रहकर साथ कुछ क्षण,
व्रण उभय के भर न पाये।
और वो तुम—
– अनुराधा पांडेय, द्वारिका, दिल्ली