नाश करने को तिमिर का, पूर्व से प्रकटे दिवाकर।
भोर के पंछी सुनहरी, धूप में बैठे नहाकर।
ओस की बूंदें चमकती, रश्मियाँ रवि की पड़ें जब।
शीत से ही पीत होकर, पात वृक्षों से झड़ें तब।
दे रहे सबको निमंत्रण, रागिनी खगवृन्द गाकर।
भोर के पंछी………..१
खेत को जाते कृषकगण, बैल हल ले साथ में जब।
दृश्य ऐसे देख अनुपम, हर हृदय जाते मचल तब ।
दूध बछड़ों को पिलाने, गौ बुलातीं हैं रँभाकर।
भोर के पंछी……….२
घंटियाँ बजतीं गलों की, खुर उड़ाते धूल पथ पर।
उड़ रहे हैं भ्रमर-तितली, है मगन हर फूल खिल।
क्षितिज से ऊपर चला तो, दिख रहा है नव प्रभाकर।
भोर के पंछी………..३
गगन पथ पर चल दिये रवि, तेज जग भर को दिखाकर।
भोर के पंछी सुनहरी, धूप में बैठे नहाकर।।
– प्रवीण त्रिपाठी, नई दिल्ली