हमारी जिंदगी की नींव ही पर्यावरण है ।
धरा पर पेड़ पौधों का सजा जो आवरण है।।
न डालो मैल नदियों में न काटो पेड़ भाई ।
यही सौ रोग रोके एक ऐसी है दवाई ।।
अभी जागे नहीं तो हानि होना है सुनिश्चित ,
बुलावा रोग का,बीमारियों का यह वरण है ।।1
सभी ये जानते तो हैं नहीं क्यों मानते हैं ।
समंदर में परीक्षण की छतरियां तानते हैं ।।
इसी कारण उठें तूफान सागर में अनौखे ,
हुआ पथ भ्रष्ट जाने क्यों हमारा आचरण है ।।2
अकेली भूमि पर ही आदमी का कारवां है ।
यहीं पैदा , यहीं मरना ,यहीं होना जवां है ।।
अभी कलयुग की दस्तक है धरा पर शोर देखो ,
नदी दूषित हवा दूषित दुखी वातावरण है ।।3
हिमालय क्रोध में है और सागर में तपिस है ।
दुखी है राम हमसे और गुस्से में कपिस है ।।
इशारा कर रहे भूचाल सागर के बबंडर ,
हमारी गलतियां “हलधर” हमारा आमरण है ।।4
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून