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गीत – जसवीर सिंह हलधर

हाथ में छाले पड़े हैं ,पैर कीचड़ में सने  हैं !

मौत से होती लड़ाई, सामने बादल घने हैं !।

 

एक सपना था हमारा चाँद तारों तक उड़ेंगे ,

टूट जायें पंख बेशक नभ सितारों से जुड़ेंगे ,

आसमानी हौंसलों से देवता भी अनमने हैं !

मौत से होती लड़ाई सामने बादल घने हैं !!1

 

भारती की रंगशाला कब हमें ये रास आयी,

व्याज ने लूटी हमेशा खेत की सारी कमायी ,

युद्ध मौसम से लड़े हैं लोह के चावे चने हैं !

मौत से होती लड़ाई सामने बादल घने हैं !!2

 

हम विदुर से हो गए है कौरवों में पांडवों में ,

घाव गहरे हो गए हैं राजनैतिक तांडवों में ,

हम गलीचों से बिछे हैं शामयानों से तने हैं !

मौत से होती लड़ाई सामने बादल घने हैं !!3

 

घिर रहे काले अँधेरे नाविकों की बस्तियों पर ,

लहर ने खाये मछेरे मौत लौटी कस्तियों पर ,

सिंधु पर लंका सरीखे सेतु “हलधर “बांधने हैं !

मौत से होती लड़ाई सामने बादल घने हैं !!4

– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

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