क्या कहें जीवन कहानी, कौन है मेरा।
खा रहें धोखा हमेशा, रोज का फेरा।
पूछने वाला कहाँ है, आसमां झाँकें।
झेलते है हाय तौबा, धूल हीं फाँकें।
कौन देता है सहारा, बात बेमानी।
चोट खायें दर्द होता, है परेशानी।
लोग पूछे क्या बतायें, लाभ या हानी।
भूल बैठे जिंदगी को, देख मनमानी।
ना कहीं कोई ठिकाना, राह अंजाना।
ठौर कोई ढ़ूंढ़ता है, पार है जाना।
कौन जाने क्या भरोसा,हाय मजबूरी।
क्या पता जाना कहांपे, मापता दूरी।
रंग चोखा रोज धोखा, आदमी भी क्या।
दौड़ता छूलें किनारा, बांध के आशा।
पाँव छोटे राह लम्बी, जा रहा झूमें।
हार के बैठा धरापे, राह को चूमें।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड