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ग़ज़ल – विनोद निराश

हाले-दिल उन्हें बताते कैसे ?

इश्क़ था उनसे जताते कैसे ?

 

मुफलिसी से ही रहे वाबस्ता ,

ये आँख उनसे मिलाते कैसे ?

 

दिल तो पहले ही दे चुके थे ,

जां बची थी वो गंवाते कैसे ?

 

उनींदी आँखों में नींदें कहां थी ,

हंसीं ख्वाब हम सजाते कैसे ?

 

गर न मिलते तुमसे जाने-वफ़ा ,

इतना हसीन धोखा खाते कैसे ?

 

कैसे हुई ज़िंदगी से बहारे खफा ,

रुखसती के बाद बताते कैसे ?

 

देख कर हाथ में हाथ गैर का ,

तुझे निराश गले लगाते कैसे ?

– विनोद निराश , देहरादून

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