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कविता – जसवीर सिंह हलधर

हे यमदूत कहां ले आए ,मुझको यहां नहीं रहना है ।

स्वर्ग लोक से मुझे निकालो ,ये सुख मुझे कहां लहना है ।।

 

देवलोक के द्वारे आकर, क्यों तुमने रथ थाम लिया है ।

स्वर्ग लोक के लायक मैने ,ऐसा भी क्या काम किया है ।

सिंहासन से क्यों उठ आए ,इंद्रदेव मेरे स्वागत में ।

माना स्वर्ग बहुत सुंदर पर , मेरा मन अटका भारत में ।

भारत ही मेरा आभूषण ,भारत ही मेरा गहना है ।।

हे यमदूत कहां ले आए ,मुझको यहां नहीं रहना है ।।1

 

धरती जैसे रंग नहीं हैं, इंद्रलोक के इस प्रांगण में ।

आभासी दुनिया है सारी , भांप लिया मैंने विचरण में ।

धरती सा माहौल नहीं है, धरती सा भूगोल नहीं है ।

दिवाली से दीप नहीं हैं,होली जैसा ढोल नहीं है ।

धरती जैसे पक्षी नहीं है ,वृक्ष न कोई भी टहना है ।।

हे यमदूत कहां ले आए ,मुझको यहां नहीं रहना है ।।2

 

निर्जन सन्नाटा पसरा है ,मृत्यु लोक सा दृश्य नहीं है ।

बेशक नाच अप्सरा करतीं ,फिल्मों जैसा नृत्य नहीं है ।

कितने भी दुख दर्द वहां पर  मृत्यु लोक सा कृत्य नहीं है ।

आभासी सुमेरू पर्वत है , नगपति जैसा सत्य नहीं है ।

गंगा जैसी नदी नहीं है ,जिसके साथ मुझे बहना है ।।

हे यमदूत कहां ले आए ,मुझको यहां नहीं रहना है ।।3

 

योग साधना के चक्कर में , छूटी मेरी धरा सुहानी ।

भोलेपन में यह वर मांगा , क्षमा करो मेरी नादानी ।

तीन अवस्था नहीं यहां पर , नहीं बालपन नहीं जवानी ।

वही पुरानी चार अप्सरा , वही देवता वही कहानी ।

धरती जैसी आग नहीं है ,जिसमें मुझे और दहना है ।।

हे यमदूत कहां ले आए ,मुझको यहां नहीं रहना है ।।4

 

चित्रगुप्त ने बही निकाली, जांचा परखा लेखा जोखा ।

यमदूतों को भी धमकाया ,ले आए क्यों जंतु अनौखा ।

ये साहित्य सदन का जातक , इसको अभी बहुत लिखना है ।

मंचों पर बेशक कम पाए,कविता में सदियों दिखना है ।

भूल सुधार करो यमदूतों , “हलधर” ब्रह्म कवच पहना है ।।

इसको मृत्यु लोक पहुँचाओ,  इसे वहां कविता कहना है ।।

हे यमदूत कहां ले आए ,मुझको यहां नहीं रहना है ।।5

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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