दिया जो दर्द मुझको खल रहा है,
मेरे अंदर कही कुछ चुभ रहा है।
नसीबों से हमे तू अब मिला था,
चले जाना अजीयत दे गया है।
निगाहें आज तेरी कुछ जताती,
मगर दिल भी सुने अब तो कहाँ है।
हुआ है प्यार तुमसे ऋतु हमें भी,
मुकद्दर से वफा हमको मिला है।
रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़