अनछुई सी वो यादें – सविता सिंह
कुछ चीजें रहती है याद
अनंत काल तक,
शायद वह घटित ही होती हैं
इसलिए ताकि जीवन में रहे।
हमेशा, जीवन पर्यंत,
जैसे स्कूल के वक्त
कॉपियों में रखें
सौपनर से छिली गई
पेंसिल के कतरन,
बिल्कुल गुलाई में कटे हुए,
सूखे हुए पीपल के पत्ते,
मोर के पंख,
गुलाब की सूखी पंखुड़ियां,
जिन्हें आज भी स्पर्श करो
तो हो जाती हैं बिल्कुल ताजी,
और तो और बचपन के
क्या वह दिन थे।
बिजली कड़के और
गिरे गोबर पर तो
वह बन जाए सोना,
क्या नासमझी भरे दिन,
यही तो है वह सारी यादें,
वो पहला खत, छुपा के पढ़ना
और हाँ वह अबोध प्रेम,
प्राप्य हुआ हो या अप्राप्य
रहती है जेहन में
अनंत काल तक,
उम्र के किसी पड़ाव पर भी
चेहरे पर वही रौनक ला देती है,
यही वह चीजें हैं जो रहती है
याद अनंत काल तक।
– सविता सिंह मीरा,जमशेदपुर