सदियों में है जनमते,
निष्ठावान कलाम।
मातृभूमि को समर्पित,
किये अनूठे काम।।
धीर वीर थे साहसी,
करते सभी सलाम।
पूत सपूत अनेक हैं,
न्यारे एक कलाम।।
नित शाबाशी मिल रही,
किये अनोखे काम।
खुदगर्जी में डूबकर,
बदले नहीं कलाम।।
जिये मरे हम वतन पे,
करिये ऐसे काम।
बनो विवेकानंद तुम,
या फिर बनो कलाम।।
ज्ञान क्षितिज पर था रहा,
हुआ नहीं अंधकार।
सौरभ आज कलाम से,
जग में है उजियार।।
अपने ज्ञान विज्ञान से,
बदल गये वो दौर।
खोजे सभी कलाम की,
सृजन की सिरमौर।।
– डॉ. सत्यवान सौरभ, उब्बा भवन,
आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)-127045