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जलते पुतले पूछते – डॉ सत्यवान सौरभ

घर-घर में रावण हुए, चौराहे पर कंस ।

बहू-बेटियां झेलती, नित शैतानी दंश ।।

 

मन के रावण दुष्ट का, होगा कब संहार ।

जलते पुतले पूछते, बात यही हर बार ।।

 

पहले रावण एक था, अब हर घर, हर धाम।

राम नाम के नाम पर, पलते आशाराम।।

 

बैठा रावण हृदय जो, होता है क्या भान।

मान किसी का कब रखे, सौरभ ये अभिमान।।

 

रावण वध हर साल ही, होते है अविराम।

पर रावण मन में रहा, सौरभ क्या परिणाम।।

 

हारे रावण अहम तब, मन हो जब श्री राम।

धीर वीर गम्भीर को, करे दुनिया प्रणाम।।

 

झूठ-कपट की भावना,  द्वेष छल अहंकार।

सौरभ रावण शीश है, इनका हो संहार।।

 

अंतर्मन से युद्ध कर, दे रावण को मार।

तभी दशहरे का मने, सौरभ सच त्यौहार।।

 

राम राज के नाम पर, रावण हैं चहुँ ओर।

धर्म-जाति दानव खड़ा, मुँह बाए पुरजोर।।

 

-डॉ सत्यवान सौरभ,, 333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी,

हरियाणा – 127045, मोबाइल :9466526148, 01255281381

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