मनोरंजन

गीतिका – मधु शुक्ला

अहं त्यागो अगर अपनत्व पाना है,

न इससे श्रेष्ठ कोई भी खजाना है।

 

हृदय है यदि विकल तो व्यर्थ है दौलत ,

बिना सेहत न संभव मुस्कुराना है।

 

बनायें ज्ञान को सद् ज्ञान का सागर ,

अगर अज्ञानता जड़ से मिटाना है।

 

दिया है वक्त हमको आज अम्बे ने ,

कृपा पा लो उन्हें फिर ‌लौट जाना है।

 

अतिथि कितने दिवस सम्मान पायेगा ,

सदन ही व्यक्ति का उत्तम ठिकाना है।

–  मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश

Related posts

गुरुदीन वर्मा आजाद प्रतिभाशाली कवि : संगम त्रिपाठी

newsadmin

ग़ज़ल (हिंदी) – जसवीर सिंह हलधर

newsadmin

ग़ज़ल – अनिरुद्ध कुमार

newsadmin

Leave a Comment