अहं त्यागो अगर अपनत्व पाना है,
न इससे श्रेष्ठ कोई भी खजाना है।
हृदय है यदि विकल तो व्यर्थ है दौलत ,
बिना सेहत न संभव मुस्कुराना है।
बनायें ज्ञान को सद् ज्ञान का सागर ,
अगर अज्ञानता जड़ से मिटाना है।
दिया है वक्त हमको आज अम्बे ने ,
कृपा पा लो उन्हें फिर लौट जाना है।
अतिथि कितने दिवस सम्मान पायेगा ,
सदन ही व्यक्ति का उत्तम ठिकाना है।
– मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश