मनोरंजन

गीत – शिप्रा सैनी

जैसा भगवन चाहें होता, वश में अपने क्या बोलो।
बस अपने सब कर्म करो तुम, फल से मत इसको तोलो।

सुख ही सुख है जो सोचोगे, जीवन सुख का मेला है ।
सोचोगे जो दुख ही दुख है, जीवन लगे झमेला है।
हँसते-हँसते चलते जाओ, मत अपने पथ से डोलो।
बस अपने सब कर्म करो तुम, फल से मत इसको तोलो।

छिपा प्रयोजन घटनाओं में, देख नहीं सकता कोई।
करवट कैसे किस्मत लेगी, भाँप नहीं सकता कोई।
भूत-भविष्य छोड़कर साथी, आज समय के तो हो लो।
बस अपने सब कर्म करो तुम, फल से मत इसको तोलो।

ईर्ष्या, द्वेष, जलन में पल-पल, देखो जलते हैं सारे।
बिन श्रम के ही बस यह चाहें, बदलें किस्मत के तारे।
किसी एक के जीवन में तो, मन से मधु थोड़ा घोलो।
बस अपने सब कर्म करो तुम, फल से मत इसको तोलो।

दूजों की दुख-दुविधाओं में, अपनी रोटी क्यों सेंके ?
छोड़ सही को स्वार्थपूर्ति में, पासे ऐसे क्यों फेंके ?
ऊपर सबसे एक खिलाड़ी, अपनी आँखें तो खोलो।
बस अपने सब कर्म करो तुम, फल से मत इसको तोलो।

जैसा भगवन चाहें होता, वश में अपने क्या बोलो।
बस अपने सब कर्म करो तुम, फल से मत इसको तोलो।
शिप्रा सैनी मौर्या, जमशेदपुर

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