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दहक जाए ना फिर अनल – सविता सिंह

तुम्हारी याद में हमने

जलाया दीप जो पल-पल,

उसी की बुझी तीली से

बनाया यादों का महल।

कितनी बार बुझे हैं हम

जलने को हर एक बार,

प्रेम की आँधी में साजन

दहक जाए ना फिर अनल।

 

कभी आ जा सनम अब हम

कहीं ना राख हो जाएँ ,

बिना पत्तों की सूखी हुई

कहीं हम शाख  ना हो जाएँ।

खड़े हैं देहरी पर हम तो

गड़ाए नैन राहों में।

जले हैं तन बदन अब तो

कहीं ना खाक हो जाये।

बेवजह लिखते रहते थे

कहो क्यों गीत और ग़ज़ल।

प्रेम की आँधी में साजन

दहक जाए ना फिर अनल।

 

बरस जाओ कभी प्रियवर

कभी हम पर जरा जम कर,

कि सदियों से हमारा दिल

नमी बिन हो गया बंजर,

जरा जो देर हो जाये

कहीं फिर राख हम ना हों,

नहीं फिर से मिलेगा अब

वही गुजरा हुआ मंजर।

हमारे बिन तेरे नैना

हो गये हैं फिर सजल

प्रेम कि आँधी में साजन

दहक जाये न फिर अनल।

 

तुम्हारी याद में हमने

जलाया दीप जो पल-पल,

उसी की बुझी तीली से

बनाया यादों का महल।

– सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर

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